बदल रही है भारतीय खेती

भारतीय खेती के पिछड़ेपन का मुख्य  कारण भूमि सुधार संस्थागत सुधार और तकनीकी सुधारों में  पिछड़ापन तो रहा ही ,साथ में कभी उसको एक व्यवसाय के रुप में न देखकर मात्र आजीविका के रूप में देखने की सोच भी रही है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान कृषि का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक हितों की पूर्ति करना था। हालांकि स्वतंत्रता पश्चात भारत ने कई कृषि सुधारों को लागू किया है। पचास और साठ के दशक के सुधार  कृषि उत्पादकता और आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर केंद्रित थी। हरित क्रांति का उद्देश्य उच्च उपज वाली फसल किस्मों,आधुनिक कृषि तकनीकों और सिंचाई सुविधाओं की शुरूआत के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाना था। यह भारत को खाद्य अल्पता की स्थिति से  आत्मनिर्भर राष्ट्र में बदलने में सफल रहा। सरकार ने भूमि हदबंदी कानूनों के माध्यम से भूमि के पुनर्वितरण के प्रयास किए ,जिसका उद्देश्य सामंती भूमि स्वामित्व प्रणाली को तोड़ना था। हालांकि उद्देश्य अच्छा था परन्तु कार्यान्वयन ख़राब होने  के कारण विभिन्न राज्यों में इसका प्रभाव अलग-अलग रहा। 1990 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और बढ़त निजीकरण के चलते कृषि नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। निर्यात बाधाएँ हटी  और किसानों को नकदी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इससे जहां नए अवसर खुले, वहीं छोटे किसानों को वैश्विक मूल्य अस्थिरता का भी सामना करना पड़ा। प्रौद्योगिकी में प्रगति से कृषि में नये रास्ते आये।     

    भारतीय कृषि देश की लगभग 58 प्रतिशत जनसंख्या के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है। वर्तमान में हमारे देश में 196 मिलियन टन फल एवं सब्जी तथा 305 मिलियन टन खाद्यान्न, 36 मिलियन टन दाल, 34 मिलियन टन तिलहन तथा 27 मिलियन टन शक्कर का उत्पादन किया जा रहा है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 18 प्रतिशत योगदान देती है। संस्थागत सुधारों के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा पिछले एक दशक में उठाये गये कदम महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना  का लक्ष्य वर्ष 2024 तक100 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई प्रदान करना है। नई नहरों एवं बांधों का निर्माण,मौजूदा नहरों और बांधों का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण ,सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा भूजल पुनर्भरण किसानों का क्षमता निर्माण, इसके  प्रमुख लक्ष्य हैं।  मार्च 2023 तक इस योजना के अंतर्गत लगभग 30 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि सिंचित की गई थी।  परम्परागत कृषि विकास योजना किसानों को पारंपरिक कृषि के लिए प्रशिक्षण, इनपुट और सुनिश्चित खरीद गारंटी प्रदान करती है। वर्ष 2016 में प्रारंभ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, जैसे सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि और कीट संक्रमण के कारण फसल के नुकसान के खिलाफ बीमा कवरेज प्रदान करती है। सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रीमियम का 50 प्रतिशत और अन्य किसानों के लिए प्रीमियम का 25 प्रतिशत वहन करती है।  प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि  योजना में  छोटे और सीमांत किसानों को प्रति वर्ष 2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में 6,000 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती  है। इससे लगभग 125 मिलियन किसानों को लाभ मिला है। पीएम- किसान- एमकेवाई  योजना का उद्देश्य छोटे  और सीमांत किसानों को 3,000 रुपये की मासिक पेंशन प्रदान करना है। यह योजना केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित है। विद्युत (संशोधन) अधिनियम, 2020 के द्वारा किसानों को अपनी बिजली बनाने और बेचने की सुविधा  और अनुमति प्रदान किया गया है। इससे किसानों को अपने बिजली बिल पर पैसे बचाने और अधिक आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। स्वाभाविक रूप सुधारों से कृषि उपज में वृद्धि हुई है और उसके मार्केटिंग की समस्या भी किसानों के समक्ष आती है। सरकार भले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत किसानों की उपज खरीदती है परंतु यह सिर्फ कुछ गिने-चुने फसलों के लिए है।  कृषि उपज के विपणन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ग्रेडिंग और निर्यात पर ध्यान न देने के कारण कृषि उपज बिक्री और निर्यात में वृद्धि नहीं हुई है।  विश्व के कुल कृषि उपज निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2.4 प्रतिशत ही है। सरकार ने फसल विविधीकरण पर जोर दिया, ताकि किसान गेहूं-धान-गन्ना जैसी चुनिंदा फसलों की खेती से आगे बढ़कर बागवानी, मछली पालन, दुग्ध उत्पादन जैसी आयपरक गतिविधियों में संलग्न हों। कृषकों को उनकी उपज का उचित  एवं प्रतिस्पर्धी मूल्य दिलाने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) की शुरुआत की गई है। इससे किसान बिना किसी बिचौलियों के अपनी उपज बेच रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) द्वारा संचालित ई-नाम किसानों को देश भर के किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए  एकल मंच प्रदान करता है। इससे किसानों को उनकी उपज के लिए बेहतर और प्रतिस्पर्धी मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है और मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करने में भी सहायता मिलती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च के अनुसार ई-नाम के माध्यम से अपनी उपज बेचने वाले किसानों को पारंपरिक मंडियों की तुलना में औसतन 10 प्रतिशत अधिक मूल्य प्राप्त हुआ है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार ई-नाम से कृषि वस्तुओं की कीमतों में लगभग 20 प्रतिशत अस्थिरता कम हो गई है। छोटे किसानों को बाजार व्यवस्था से जोड़ने के लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हाटों के बुनियादी ढांचे में सुधार कर उन्हें आधुनिक बना रही है। फल-सब्जी, दूध, मछली जैसे शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के शीघ्र एवं सस्ती ढुलाई के लिए किसान रेल और किसान उड़ान प्रारंभ  किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उत्पादन के व्यवसाय में वृद्धि  के लिए केंद्र ने राज्यों से खाद्यान्न कारोबार पर मंडी शुल्क में एकरूपता लाने को कहा है । 

      उक्त सुधारात्मक  प्रयासों  के अतिरिक्त किसान उत्पादक संगठन (एफ पी ओ) और किसान उत्पादक कंपनी (एफ पी सी) का गठन छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है। देश में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या लगभग 12 करोड़ से अधिक हैं। यह कुल किसानों का लगभग 86 प्रतिशत हैं। इनकी कृषि जोत का औसत आकार 1.10 हेक्टेयर से कम है। इन किसानों को उत्पादन से जुड़े कार्यों जैसे तकनीक, बीज, मशीनरी, ऋण, प्रसंस्करण और  बाजार तक पहुंचने में अत्यधिक कठिनाई होती है। एफ पी ओ द्वारा अपने सदस्य किसानो से फल-फूल, सब्जी, मछली आदि से संबंधित उपजों को खरीदकर सीधे कंपनियों को बेचा जाता है। सरकार ने वर्ष 2024 के अंत तक दस हजार एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा है, जिससे लगभग 30 लाख किसान लाभान्वित होंगे। एफपीओ अपने सदस्य किसानों को आपसी सहयोग से बैंक लोन, फसल की बिक्री, पैकेजिंग, मार्केटिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, ताकि किसानों को इधर-उधर न भटकना पड़े और उनका शोषण न हो। एफपीओ पूर्णरूपेण किसानों का संगठन होता है, जिसमें सदस्य किसान ही एक-दूसरे की सहायता करते हैं। देश में अबतक लगभग 7,600 एफपीओ गठित हो चुके हैं। नाबार्ड के अनुसार वर्ष  2020- 22 के मध्य एफपीओ से जुड़े किसानों की कृषि उत्पादकता में  31.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एफपीओ के माध्यम से पिछले तीन-चार वर्षों में वाराणसी कृषि उपज के निर्यात का एक हब बनकर उभरा है। वर्ष 2022 में वाराणसी एयरपोर्ट से 541 मीट्रिक टन कृषि उपज का निर्यात किया था, जो गतवर्ष  बढ़कर 655 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है। पूर्वी उत्तरप्रदेश के लगभग 20 हजार किसान 50 एफपीओ से जुड़कर अपनी  फसलों का निर्यात कर रहे है। स्पष्ट है सरकार बिचौलियों को हटाकर सीधे किसानों को निर्यातक बना रही है। राजस्थान के झुंझुनू जिले के लांबी अहीर गांव में एक एफपीओ ने अपने 300 सदस्यों के साथ 800 कुंतल सरसों की कटाई और बिक्री की है। यहां की महिला सरपंच नीरू यादव द्वारा संचालित एफपीओ ने 50 लाख रुपए का राजस्व अर्जित किया है। किसानों का संगठन अब 5 करोड़ रुपए के निवेश के साथ एक कृषि-प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के लिए तैयार है। इतना ही नहीं  लैंगिक समानता की दिशा में कदम बढ़ाते हुए इस एफपीओ ने 150 महिला किसानों को उनके पुरुष समकक्षों के साथ इक्विटी धारकों के रूप में शामिल किया है। बिहार के बख्तियारपुर, एकंगरसराय, बाढ़ और हरनौत के लगभग 3273 किसानों ने एफपीओ के माध्यम से अपने सब्जियों को सीधे दिल्ली, नोएडा जैसे बड़े शहरों में बेचना शुरू कर दिया है। राजगढ़ (मध्यप्रदेश) के एफपीओ और एफपीसी  के छोटे-छोटे किसान अब बड़ी बड़ी कंपनियों से आंखों में आंखें डालकर अपनी फसलों का सौदा तय करते हैं। यह आत्मविश्वास उन्होंने एफपीओ की सामूहिक शक्ति से पाया है।

    खेती  के बदलते चेहरे में एक महत्वपूर्ण जैविक (आर्गेनिक) खेती को मिल रहा बढ़ावा भी है। अत्यधिक फसल उत्पादन की होड़ में अंधाधुंध रासायनिक खाद तथा पेस्टिसाइड के प्रयोग तथा सिंचाई प्रबंधन खराब होने के कारण देश की अधिकांश मिट्टी तथा पानी की स्थिति खराब हो गई है।  देश के 700 जिलों में से लगभग 256 जिलों में अत्यधिक भूजल दोहन के चलते भूजल स्तर बहुत नीचे  जा चुका है। रासायनिक खाद और पेस्टीसाइड के कारण मिट्टी, पानी, हवा, भोजन पर  तथा पर्यावरण प्रदूषण के कारण पशुपक्षी, कीट पतंगे तथा मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के दृष्टिगत भारत सरकार द्वारा मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए स्वायल हेल्थ कार्ड योजना , परंपरागत कृषि विकास योजना, नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना, मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चैन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन योजनाएं चलाई जा रही है। इन सब प्रयासों से  भारत में जैविक उत्पादों का बाजार प्रति वर्ष 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। अभी यह बाजार लगभग 1.20 लाख मिलियन रूपये का है। आज भारत में कुल 4.43 मिलियन हेक्टर में जैविक खेती की जा रही है, जो वैसे तो कुल कृषि क्षेत्रफल का 2 प्रतिशत ही है परंतु विश्व में इसका पांचवा स्थान है।  जाहिर है भारतीय खेती अब तेजी  से बदल रही है। खेती किसानी के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए सरकार और खुद किसान दृढ़ संकल्पित है। 

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