बाघ का नैचुरल हैबिटेट

बाघ अपने नैचुरल हैबिटेट मे भटक रहा है जिस पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है। यह संघर्ष है जानवर और इंसान के मध्य जमीन पर कब्जा करने के लिए। अपना हक जमाने के लिए है।एक ओर इंसान अपनी शारीरिक और दीमागी शक्ति का प्रयोग करते हुए लगातार जंगलों मे हस्तक्षेप करता जा रहा है। जंगल ,नदियां, पोखरे ,तालाब पाटता हुआ उसे अपने उपयोग लायक बनाता जा रहा है। जंगली जीवों का घर द्वार सिमटता जा रहा है तो वो गांवो और खेतों की ओर निकल आता है। वन विभाग कहता है कि जंगल से सटे क्षेत्र मे गन्ने की खेती न किया जाय क्योंकि जब जानवर जंगल से निकलकर खेतों की ओर बढता है तो गन्ने के खेत उनके छुपने और निवास करने के लिए सबसे मुफीद जगह बन जाते हैं। अब जब यहाँ आसानी से इंसान, बकरी, भैंस ,गाय आदि उसे खाने को मिल जाय तो भला वो वापस जंगल मे क्यों जाय? वैसे भी कहा जाता है कि जब बाघिन बच्चों को जन्म देती है तो उनकी जान बचाने के लिए जंगल से दूर निकल आती है। नदी किनारों की झाड़ियां उनके लिए सुरक्षित स्थान हैं। जिन क्षेत्रों मे आजकल बाघ टहलते दिखाई पड़ रहे हैं वो क्षेत्र आज से सौ डेढ सौ साल पहले जंगल हुआ करते थे अर्थात बाघों के पूर्वजों का घर या स्थान। हम इसे यूँ भी समझ सकते हैं कि जैसे इंसान अपने बाप दादाओं के जन्म स्थान से जो प्रेम रखता है, बाघ भी वही कर रहे हैं। यह नैचुरल है।तराई के जंगलों से सटे क्षेत्रों मे यदि शीघ्र ही बाघों के उनके जंगली क्षेत्रों से बाहर निकलने पर रोक लगाने हेतु प्रयास यथा सोलर फेंसिंग या टाइगर सफारी बनाने जैसे उपाय नही किए गये तो जमीन कौड़ियों के भाव बिकने लगेंगे। सोलर फेंसिंग मे जंगल के किनारे किनारे तारों के बाड़े लगाये जाते हैं जिसमें इलेक्ट्रिक करंट दौड़ता रहता है। इससे जानवरों को हानि नही होती है बल्कि सिर्फ झटका लगता है और यह सोलर इनर्जी से संचालित होता है।लोग बाग खेती करना छोड़ देंगे क्योंकि फसलें काटने, निड़ाई- गोड़ाई या दवाओं का छिड़काव करने कौन अपने खेतों मे जाएगा? सबको डर सता रहा है यदि खेतों मे गये तो पता नही किधर से बाघ आ जाए और उसे निवाला बनाकर चला जाय।गन्ने की खेती पर वन विभाग रोक लगा रहा है पर धान या गेंहू के खेतों मे भी तो बाघ छुप सकता है।लाख प्रयास के बावजूद पीलीभीत के ".नरभक्षी" अभी तक पकड़े नही जा सके हैं और वन विभाग ये भी बता नही पा रहा है कि कितने बाघ इंसानी इलाके मे घुस चुके हैं।सच मानिए तो उन्हें ये भी पता न होगा कि वास्तव मे कितने बाघ जंगल मे हैं? इसी का लाभ पशु तस्कर उठाते रहे हैं। अभी कुछ वर्ष पूर्व नेपाल मे पकड़े गये एक पशु तस्कर ने स्वीकार किया था कि उसने करीब चालीस पचास बाघों को मारकर उसके खाल  को बेचा है। बाघिनें लगातार बच्चों को जन्म देती रहती है जो दो तीन साल मे ही बड़े बन जाते हैं।मानव और बाघों के संघर्ष को रोकने का उपाय यह है कि दोनों एक दूसरे के क्षेत्राधिकार मे हस्तक्षेप करना छोड़ दें।बाघ इंसानों पर अकेले मे हमला करता है, जब इंसान झूंड मे हो तब नही। जंगल मे लकड़ियां और फल चुनने जाने पर रोक लगे। इसीलिए जंगल किनारे के गांवों मे प्राथमिकता के आधार पर गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं। गांवो को खुले मे शौचमुक्त ( ओ डी एफ) बनाने पर जोर दिया  जा रहा है।सोलर फेंसिंग लगाये जायें जिससे बाघ जंगल से बाहर न निकल सके।सबसे बड़ी बात की अवैध रुप से जंगली जमीन हथियाने का सिलसिला रोका जाये।

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