पाखंड

"मन न रंगाये जोगी, रंगाये जोगी कपड़ा
दढ़िया बढाके जोगी बन गई ले बकरा "!

बिहारी काका आज अंदर से काफी उद्वेलित दिख रहे थे!
" काका! कल वाली घटना से परेशान हैं?'   मैने पूछा!
" मारो ...... को! नाम न लो उस पापी का"! मै तो इसीलिए पहले से ही इन ढोंगी बाबाओं को गलियाता रहता हूँ"!
" लेकिन प्रवचन तो आप भी सुनते रहते हैं"! रोज सबेरे ".फूं - फां.. भी करते रहते हैं!"
" अरे बबुआ! किसी अच्छे भाषण, प्रवचन, भजन गायन का सुनना, धार्मिक किताबों का पढना अलग बात है पर मै कभी इनके किसी शिविर मे नही गया"!
" काका! लेकिन इन आश्रमों मे तो " भेड़िया धसान" भीड़ लगी रहती है! जैसे " स्वर्ग की सीढ़ी डायरेक्ट इनके आश्रमों मे ही लैंड करती है"! मै बोला।
मुझे तो कई लोगों ने कहा" अभी तक किसी को गुरु नही बनाए! जन्म मरण के बंधन से मुक्ति नही मिलेगी"! तो मैने कहा चाहता कौन है मुक्त होना"! जो देखा नही उसके बारे मे क्यों परेशान रहूँ। और इन गुरुओं को कबसे " मोक्ष" दिलाने का ठेका मिल गया!"
"लेकिन काका! एक से एक विद्वानों को आप इन  बाबाओं का चेला बनते देखेंगे जैसे ये भी एक फैशन हो!" मीडिया तो इनका" कामर्शियल " इसलिए चलाती है कि उसे पैसा मिलता है पर वो भी एक तरह से इनके व्यापार वृद्धि मे सहायक है।"!
"नही बबुआ!असल मे  ये अपने शिविर मे आनेवालों का पहले " माइंड वाश" करते हैं फिर उसमें अपनी बातों को फिट करते हैं।वैसे ही जैसे " चिटफंड कंपनी मल्टीलेवल चेन सिस्टम से बिजनेस करनेवाली कंपनियां, सामान बेचने वाले शो रुम इत्यादि। ये बाबा लोग भी भगवान, धर्म का प्रोडक्ट बेचते हैं और जानते ही हो कि हम तो मूलतः धर्मभीरु  ही। धर्म के नामपर हमारा कोई कितना भी दोहन, शोषण और उत्पीड़न कर ले ,हम मोक्ष, परलोक और पाप पुण्य के प्रलोभन मे चूं तक नही बोलेंगे।" काका जैसे आज सबकी बखिया उधेड़कर रख देना चाहते थे।
" ये धीरेंद्र ब्रह्मचारी, चंद्रा स्वामी, बाल्टी बाबा, रामपाल, आशा राम, आगरा कांड का कुख्यात रामवृक्ष , भिंडरावाले,सबके सब भ्रष्ट राजनीति की उपज हैं। धर्म का व्यापार करनेवाले राजनेताओं ने इनको पाला पोसा और संरक्षित किया ।
" अच्छा काका! ये सारे बाबाओं के नाम मे" राम " क्यों जुड़ा हुआ है? राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे!
" यही तो इनकी चाल होती हैं! " आंख का अंधा नाम नयनसुख!   राम के नामपर लोगों को ठगते हैं।
"जिस तरह से एक एक करके " बलात्कारी बाबाओं" की फौज सामने आ रही है तो वो दिन दूर नही जब " धर्म" से लोगों का मोहभंग होना शुरू हो जाये"! काका के चेहरे पर पीड़ा झलक रही थी!
" इसी लिए तो मार्क्स ने धर्म को अफीम कहा है ! यह सर चढकर बोलता है"! मैने कहा"!
" बबुआ! हमको तो कभी कभी लगता है कि ये बाबा लोग भी " मार्क्स का चेला" ही है जो ऐसा कर रहे हैं जिससे धीरे धीरे नास्तिक हो जाएगा!"
" सही मे धर्म, राजनीति और अपराध  के त्रिशंकू मे फंसा देश का विकास लटक गया है।"

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