आंदोलन का सच

डोंट वरी दयाल"राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है! कब ,कहाँ ,कौन पलटी मार जाये कह नही सकते! प्रत्येक लीडर का अपना उद्देश्य होता है जिसे स्वार्थ भी कह सकते हो और उसको पूरा करने के लिए वह किसी भी हदतक जा सकता है। सीधी भाषा मे कहूँ तो गिर सकता है!"  संजना लाल- पीले बर्फ के गोले चूसती हुई बोली।
" लेकिन संजना, उसे तो कम से कम हमारे साथ ऐसा नही करना चाहिए था! उसे पता था कि यह हमारे भविष्य का सवाल है! हमने उस पर कितना फेथ किया था! लेकिन वो भी औरों के समान ही निकला, उसने हमारा युज किया! ,हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया!" दयाल के होंठ गुस्से से फड़फड़ा रहे थे।
क्या क्या बनने के अरमान लेकर वो शहर के बड़े कालेज मे आया था। यहाँ आकर अधिकार, स्वतंत्रता, समाजवाद, मार्क्स, चे ग्वेरा और बस्तर आदि बड़े बड़े वजनी शब्दों और वादों के जाल मे उलझ गया। शेखर , कालेज का युनियन लीडर ,बहुत ही अच्छा वक्ता ,जो अपने शब्दों से, नारों से कैंपस मे क्रांति ले आता था। एक अदृश्य क्रांति की रसधार दयाल को अपनी ओर खींच रही थी  और ऐसे मे संजना के बाजू और कंधो ने उसे साथ मे नैया खेने के सपने भी दिखाये थे। पृष्ठभूमि तैयार थी। अचानक एक दिन बिगुल भी बजा और वो तन मन से उसमे उतर गया।
" दयाल ! इस अंधे बहरों की शासन सत्ता को सुनाने के लिए भगत सिंह की तरह धमाके करने होंगे! और तुमसे बेहतर यह काम कोई नही कर सकता! मुझे तुममे उधम सिंह, खुदीराम बोस और भगतसिंह के अक्स दिखते हैं!" शेखर ने नक्शा और प्लान  दयाल को देते हुए कहा।
पूरा कैंपस आंदोलित था। धरना, प्रदर्शन, कंवासिंग और नुक्कड़ सभायें हो रही थी। दयाल भी उस गुप्त काम को अंजाम देने की तैयारी कर रहा था।
" दयाल" सुनते हो पता चला है कि शेखर ने खन्ना सर के साथ मिलकर कालेज फंड मे करोड़ों का गबन कर लिया है!" शालिनी ने लगभग फुसफूसाते हुए कहा।
" तुम झूठ बोल रही हो! उनको फंसाया जा रहा है! यह आंदोलन को विखंडित करने की साजिश है! वो ऐसा कर सकते हैं, वो तो मेरे आदर्श हैं!" दयाल ने लगभग चीखते हुए कहा।
" लेकिन मामला निकलकर तो यही आ रहा है कि अपने गबन पर पर्दा डालने और कालेज प्रशासन को दबाव मे लाने के लिए उसने आंदोलन का राग छेड़ा है! " भसीन ने शालिनी की हां मे हाँ मिलाते कहा।
दयाल तो जैसे बुरी तरह बिखर गया। " इतना बड़ा धोखा! क्रांति - आंदोलन के नाम पर! उसे अचानक वे बड़े बड़े शब्द झूठे और बेमानी लगने लगे थे। ऐसे मे संजना ने उसे संभाला था। 
" ये ठंढे बर्फ के गोले खाओ और दिमाग ठंढा करो! युनियन बनाये जाते ही हैं अपने फायदे के लिए! और ये जो युनियन के इलेक्शन मे जो लाखों खर्च करते हैं वो समाज सेवा के लिए थोड़े न करते हैं! " संजना मुस्कुरायी।
" वाकई! बड़ी कुत्ती चीज है ये!" दयाल भी उसके साथ बर्फ के गोले चूसने लगा।

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