किशना की अम्मा

" भागो ! अम्मा भागो" किशना जोर से चिल्लाया। खेत मे धान के बेहन लगा रहा था । अचानक नजर उठी तो  उसे लगा कोई जानवर घात लगाये झाड़ियों के पीछे दुबका है। उसकी अम्मा उसके लिए " पनपिआई" लेकर आई थी, मेड़ पर बैठकर सुस्ता रही थी और  उन सबको देख रही थी।
"किशना भी अपने बाबा की तरह दिखता है ना! उसे वो पुराने दिन याद आ रहे थे जब उनकी नयी नयी शादी हुई थी और पहली बार वह घूंघट काढे किशना के बाबा के लिए पनपिआई लेकर यहाँ आई थी। आसपास के खेतों मे काम करनेवालों मे खुसूर फुसूर होने लगी थी। महिलाएं मुंह ढंक कर हंसने लगी थी।किशना के बाबा ने एक कौर अपने हाथों से तोड़कर उसके मुंह मे रख दिया था। सबको ठिठियाते देख दोनों शरमा भी गये थे।
ख्यालों मे खोई अम्मा ने शोर सुनकर पलटकर देखा तबतक देर हो चुकी थी। आदमखोर ने झपट्टा मारकर पीछे से उसकी गर्दन दबोची और घसीटकर झाड़ियों की ओर ले जाने लगा। किशना के शोर को सुनकर आसपास के खेत मे कामकरने वाले कुदाल, खूरपी, बाल्टी, जिसको जो हाथ लगा ,लेकर दौड़े। संजीवन तो ट्रैक्टर दौड़ाते उसके पीछे दौड़ा। बाघ  काफी तेजी से उसे घसीटते ले जा रहा था। अम्मा के प्राण तो शायद उसी समय उड़ गये जब आदमखोर ने उसके झुर्री पड़े गरदन मे अपने पैने और नुकीले दांत गड़ा दिए थे। भला साठ बरस की बूढ़ी और कमजोर हड्डियों मे कितनी देर जान सिमटकर रहती। सभी लोगो को अपनी ओर आते देख घबड़ाकर आदमखोर अम्मा के शरीर को छोड़ गया पर जाते जाते गरदन और पीठ की बचे खुचे मांस को नोचते हुए चला गया। शायद इतनी मेहनत के बाद कुछ तो अपने लिए ले जाना उसका हक बनता था। किशना दहाड़ें मारकर रो रहा था। " क्या जरूरत थी आज अम्मा को नाश्ता लेकर आने की! मै तो खुद घर आकर खा लेता  या मुन्ने की महतारी को भेज देते"! कुछ लोगों ने किशना को संभाला तो कुछ लोग लाश को लेकर गांव की तरफ चले। लोगों की भीड़ बढने लगी थी। आसपास के गांवों मे आदमखोर द्वारा मारे जाने की बढती घटनाओं से वे आक्रोशित थे। लाश को सड़क पर रखकर उन्होंने रोड जाम कर दिया। सड़क ज्यादा चलताउ नही था फिर भी थोड़ी देर मे दोनों ओर गाड़ियों की लंबी कतारें लग गई। वो लोग प्रशासन से मुआवजा और आदमखोर बाघ का अंत करने की मांग कर रहे थे।
" क्यों भाई! क्यों जाम लगाये हो? देखो मेरी माताजी बहुत बीमार है, उसे शहर ले जाना है। देर होगी तो वो मर जाएगी! प्लीज हमें जाने दो!" एक नौजवान ने लगभग रिरियाते हुए कहा।
" नही खुलेगा ये रास्ता ! जबतक प्रशासन से कोई आ नही जाता! नही खुलेगा"-- भीड़ मे से कोई नौजवान बोला!
" भाई! तबतक देर हो जाएगी!"मा की हालत बहुत खराब है!"
उसने कातर नजरों से किशना की ओर देखा।
" भाई प्लीज! देखो तुम्हारी अम्मा तो अब आने से रही। पर मेरी मां अभी जिंदा है।अगर देर हुई तो वो भी मर जाएगी।"
किशना ने उसकी ओर देखा फिर गाड़ी मे दर्द से छटपटाती उसकी मां को देखा। लगा जैसे उसकी मां की गरदन बाघ के जबड़े मे फंसा है और वह अपने को छुड़ाने के लिए तड़प रही है। उसे यह सहन नही हुआ।
बोला" मेरी मां मर गई! पर इसमें आपका दोष नही है। इसलिए आप लोग जाईये।" अरे रास्ता खोलो ! इनको जाने दो।"
वह किनारे बैठा दूर जाती गाड़ी को काफी देर तक देखता रहा। उसे लगा जैसे अब उसकी मां आदमखोर के चंगुल से छूट गई है। "पन पिआई" अब भी थाली मे कपड़े से बंधा उसी खेत के मेड़ पर उसका इंतजार कर रहा था और उसे लानेवाली मां की लाश सड़क के बीचोबीच पड़ी हुई थी।

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