कांफिडेंस लेवल की बात है....

" तो दसमी बाद वह जिद पर अड़ गया कि साइंस नही पढेगा। ऐसा नही था कि उसे कम नंबर आया था या वह किसी साइंस विषय  मे कमजोर था या शहर के सबसे अच्छे  कालेज मे एडमिशन नही होता!सिर्फ कुछ  अलग  करने  की  चाहत थी !लीक  से  हटकर  चलना  उसकी  फितरत !

"घर मे सब  साइंस लेकर पढे है तो क्या सब डाक्टर इंजीनियर ही बनेगा? मै तो कामर्स ही पढूंगा।
 विपुल ने पापा को समझाया" उसका मैथ बहुत अच्छा नही था और अलजेबरा, त्रिकोणमिति तो समझ ही  नही पाता था, रट्टा मारकर या गेस पेपर पढकर नंबर आ गये थे। "
"हालांकि केमिस्ट्री मे नाइंटी सिक्स परसेंट मार्क्स था पर खास इंट्रेस्ट उसमे नही है। बाइलोजी गुरुजी कभी क्लास मे ठीक से पढाये ही नही। जब रिप्रोडक्शन का चैप्टर आता तो बोलते" अपने पढ लेना। लड़कियाँ भी थी क्लास मे ! भला उसके सामने कैसे प्रजनन के बारे मे समझाते? सर जी शर्माते रहे और बच्चे छुपकर और अधिक इंट्रेस्ट लेकर् पढते रहे।                                                        खैर!

भैया ने कहा " कामर्स का स्कोप नही है, इससे अच्छा है कि आर्ट्स लेकर पढो़।बनिया परिवार मे थोडे ही पैदा हुए हो जो कामर्स की पढाई करोगे!
मां बोली" क्या लोग कहेंगे? पास किया फर्स्ट डिवीजन से और पढेगा आर्ट्स! नाक कट जाएगी! इतने दिन  बाद गांव  मे  कोइ  फर्स्ट डिवीजन  से  पास  किया है !  इससे पहले  वाले  सब  इंजीनियर  हो  गये  है और  तुम  क्या  बनेगा? मास्टर!
 समाज मे नाक सबसे कोमल और संवेदनशील अंग है। थोड़ा भी इधर उधर हुआ कि कट जाती है।वास्तव मे समाज या परिवार मे स्थापित परंपरा है कि जो पढने मे तेज है वो साइंस लेगा और डाक्टर या इंजीनियर बनेगा। या जो साइंस लेता है वो तेज होता है, बहुत लोग इस कारण भी साइंस रखते हैं या उसके मां बाप जबरदस्ती रखवा देते हैं।
खैर ! हारकर परिवार वालों ने कालेज मे आर्ट्स लेने कि इजाजत दे दी। यह लड़का तो"बुड़िया " गया।
 पापा बोले " इससे कोई आशा मत रखो! ज्यादा से ज्यादा कहीं क्लर्की कर लेगा नही तो मास्टरगीरी!
जाहिर है राजेश  ने मैट्रिक फर्स्ट डिवीजन मे पास किया पर उसको साबित नही किया क्योंकि आर्ट्स मे एडमिशन लेने वाले स्वयं सिद्ध बकलोल होते हैं।
अलग बात है कि उस साल बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट बहुत टाइट था ।  हाईस्कूल से सिर्फ छ: बच्चे ही फर्स्ट डिवीजन मे पास हुए, उसमे अपने गांव से राजेश अकेला था।
कहते हैं बड़े बुजुर्ग की बातों को मानना चाहिए। क्योंकि राजेश बाद मे अपने डिसीजन पर पछताता रहा कि उसने आर्ट्स क्यों लिया था?
इसलिए नही कि लोग उसे कमजोर, बकलोल और बेकार समझने लगे बल्कि इसलिए कि इंटर का दो साल यूं ही व्यर्थ चला गया। एक तो वैसे ही कालेज की चमक दमक, वैविध्य पूर्ण माहौल और खुलेपन का अहसास पढने मे अरुचि उत्पन्न करता है, उपर से दस क्वेशचन रटकर परीक्षा देने के चलन और प्रवृत्ति ने पढने का उत्साह और बाध्यता दोनों समाप्त कर दिया।  दो साल सिर्फ उसने फिरंटी किया।
विपुल की एकाग्रता और पढाई के प्रति सिंसयरीटी को देखकर उसे अफसोस होता था।
"यदि वह साइंस लिए होता तो लगातार क्लास करना पड़ता, ट्युशन, सख्त सिलेबस, प्रैक्टिकल एक्जाम आदि मे लगकर पढते रहने प्रवृत्ति बनी रहती। 
डाक्टर इंजीनियर तो वैसे भी उसे बनना नही था, वह उसका लक्ष्य ही नही था।" कासिम ने भी समझाया था। पर अब हो भी क्या सकता था। " अब पछताये क्या होत ,जब चिड़िया चुग गई खेत!"
 हटिया  मे एक  दिन राजेन्द्र  गुरुजी  मिल  गये " क्यो  राजेश ! मैथ्  लिये  कि  बायोलोजी ?
" सर ! आर्ट्स  लिया  हु !"
जगवीर  बोला"  मास्टर  साहेब ! चोरी  से  फर्स्ट डिवीजन्  आ  गया  है  तो  साइंस  कैसे  लेगा !'
राजेश  कट  कर  रह  गया ! कुछ  बोला  नही! खून  के  घूंट  पीकर  रह  गया !
पर आर्ट्स ने उसे साहित्यिक रुचि का अवश्य बना दिया। कालेज मे ही उसे वरुण अग्निहोत्री का साथ मिला जिसने राजेश को थोड़ा एक्सपोजर दिया। साहित्यिक रुचि वाले  वरुण मे कांफिडेंस लेवल जबरदस्त का था। दिन भर कविताएं लिखता, सैकड़ो पत्र पत्रिकाओं मे छपने को भेजता, कुछ छप भी जाती। शहर की साहित्यिक गतिविधियों मे खुल कर भाग लेता।
"  जानते  हो  राजेश! आजकल के जितने भी नवसिखुआ नव हिन्दी साहित्यकार या लेखक हैं, वो अग्रेजी मीडियम से हैं। उनके विचार और प्लाट सब इंपोर्टेड है बस देशी मुलम्मा चढाया और परोस दिया ,हम भुख्खड़ो के सामने। हमलोग उन्हें हाथों हाथ उठा लेते हैं क्योंकि फारेन रिटर्न हमें बहुत भाती है।!
" लेकिन आप कैसे इनमे जगह बना पाओगे? एक तो छोटे शहर का,हिन्दी मीडियम स्टूडेंट और उपर से आर्ट्स पढने वाला भक्कू!"
 तपाक से बोला" यही तो सभ्यता की लड़ाई है और हमें उनमें जगह बनानी है! जो जेएनयु और डीयु वाले कालेज मे कदम रखते ही सोचने लगते हैं, हम तेईस चौबीस की उम्र मे बीए करने के बाद सोचते हैं। उनके लेवल तक पहुंचने के लिए , चार पांच साल का गैप पूरा करने के लिए एक साल मे ही पांच गुनी मेहनत करनी होगी"!
राजेश मां कहती "  पता  नही  ये  कब  बडा  होगा !  घरघुसना  बना  रहता  है ! 
पर राजेश तो कब घर से निकल कर धौलपुर हाऊस के सपने देखने लगा था।
उसने राजेश के सांवलेपन से उपजे इंफीयरिटी कांप्लेक्स को भी खत्म किया। वह कहता" हम सांवले हैं काले नही और हमसे भी काले अफ्रीकी देशों मे रहते हैं तो क्या उनको पसंद नही करता। विवियन रिचर्ड की नीना गुप्ता इतनी बड़ी दिवानी  हुई कि बिन ब्याही मां बन गई। रजनीकांत सहित साउथ के हीरो को देखो, सब के सब पकिया रंग वाले हैं, तो क्यों घबराना कि लड़की नही पटेगी। अरे लड़की कलर से नही इंटेलिजेशिया और कांफिडेंस लेवल से पटती है।

क्या कारनामे थे उसके।अलबत्ता  तो  कभी  क्लास  करता  नही  था,  यदि वह क्लास मे बैठता तो लड़कियों की जस्ट पीछेवाली बेंच पर और बड़े प्यार से किसी सुंदर लड़की की बालों को अपने हाथों मे उठा लेता, कभी उस पर उंगली फिराता तो कभी पेन से उसे नचाता। सब इतनी सफाई से करता कि कोई लड़की जान नही पाती या संभव है जानती हो तो उसे अच्छा लग रहा हो। चलते  फिरते किसी  को  कुछ  बोल  देता  था, डर  नाम  की  तो  चीज  ही  नही  थी  उसके  पास !
"  तुम  तो  बेकार  ही  आर्ट्स  और  साइंस  के  चक्कर  मे  पडॆ  हो !  साइंस  वालो  के  सुर्खाव  के  पर  थोडे  ही  लगा  होता  है !" प्रशासनिक  सेवा  मे  जाना  है  तो  हिस्ट्री ज्योग्राफी  ही  काम  आता  है  !  राजेश  फूल  के  चौडा  हो  जाता  !"
 राजेश  का  भी  शहर  के  साहित्यिक  समाज  से  परिचय  हो  गया  था! थोडा  बहुत  लिखने  भी  लगा  था !  पढने  की  आदत  वही   से  पडी !  आर्ट्स और राजेश के कांफिडेंस लेवल मे कोई संबंध है या नहीं, पता  नही ! पर वरुण के साथ ने उसकी इंफीयरिटी कांप्लेक्स को लगभग खत्म कर दिया, जो उसके भविष्य के लिए अच्छा रहा।
बाद  मे" चरवाहा स्कूल" वाले राज मे कि किताब खोलकर एक्जाम हुए थे। पर किताब खोलकर चोरी करने की कला सबको थोडे  ही  आती  है।  किसी  तरह  राजेश  भी  पास  कर  गया ! पर  कांफिडेंस  लेवल  इतना  हाइ हो  गया  था  कि  सीधे  आइए एस बनने  निकल  पडा !

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