गरीबी का मजाक
हाल मे मीडिया मे मध्य प्रदेश मे लाभार्थियों के घरों पर " मै गरीब हूँ और मै सरकारी योजना का राशन लेता हूँ"! के लिखे होने पर बवाल मचा हुआ है कि यह गरीबी का अपमान और मजाक उड़ाया जा रहा है। सरकार की आलोचना करने का मौका तलाश रही मीडिया के हाथ मसाला लगा है पर शायद उसे यह पता नहीं कि यह तो हमेशा से होता रहा है। इसमें मजाक उड़ाने की बात कहाँ से आ गयी? यह तो सरकारी तंत्र की पारदर्शिता है। " अच्छा अच्छा गप गप और कड़वा थू थू..।" यदि हमें सरकारी सहायता लेने मे हिचकिचाहट नही होती तो इसे खुलेआम स्वीकार करने मे शर्म क्यों हो रही है? क्या अंत्योदय और बीपीएल श्रेणी के लाभार्थियों की सूची ग्राम सभा के पंचायत भवनों और सार्वजनिक स्थलों पर पहले से नही लगाई जाती रही है ।यदि किसी के घर पर लिखाया गया तो हर्ज क्या है? लाभार्थी सूची मे जिस तरह से अपात्रो की भरमार है और बड़े बड़े घर वाले जिस तरह अपना नाम शामिल कराने को जुगाड़ लगाते हैं उसको हटाने के लिए आवश्यक है कि समाज के सब लोग उनका नाम जाने। लाभार्थियों का चयन भी ग्राम की खुली सभा मे करने का नियम है। हाल ही मे एक गांव मे जब राशन कार्ड सत्यापन कर्ता टीम गई तो ऐसे ऐसे लोगों के नाम सामने आये जिसे देखकर आप भौंचक रह जाते। एक महल टाइप का घर और उसमे पांच पात्र गृहस्थी कार्ड। बोलेरो मे भरकर खाद्यान्न ले जाते हैं। इन्हें शर्म नही आती बल्कि इसे अपनी शान समझते हैं। किसी के घर पर ट्रैक्टर है पर अंत्योदय का कार्ड बनवाने के लिए जुगाड़ लगाते हैं।यदि इनके घर पर लिखाया जाय कि" हम गरीब हैं" और सरकारी राशन लेते हैं" तो शायद इनको कुछ शर्म आ जाये और ये " गिव अप" कर जाये। बदले मे वाजिब हकदारों को उनका हक मिल सके।यह ठीक है कि लोक कल्याण कारी सरकार द्वारा कमजोर वर्ग को सहायता प्रदान की जाती है पर क्या इंदिरा आवास योजना और लोहिया आवास योजना के लाभार्थियों के आवास पर किस योजना के तहत उन्हें आवास प्रदान किया गया है, नही लिखा होता है? "स्वच्छ भारत मिशन " के तहत बने सभी शौचालयों पर यह लिखा होता है, तब तो कोई नही कहता कि हम शौच के लिए भी सरकार पर आश्रित हैं! सभी सड़क, तालाब, चापाकल, विद्यालय भवन, नहरों पर उद्घाटन और शिलान्यास पट्ट लगा होता है। कल ये भी कहिएगा कि सरकार या विधायक- सांसद निधि का पट्ट क्यों लगा है? इससे गांव के इज्जत की धज्जियां उड़ रही है!किसी भी ग्राम सभा के पंचायत भवन पर पहले से ही ग्राम मे विभिन्न सरकारी योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लाभार्थियों की सूची लगाई जाती रही है और यह अच्छा भी है क्योंकि इससे सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं की पारदर्शिता और सफलता मे वृद्धि होती है। सरकारी योजनाओं मे लाभार्थियों के चयन की प्रक्रिया इस तरह से चयनकर्ताओं के विवेकाधीन और लालफीताशाही से ग्रसित है कि" युनिवर्सल बेसिक इनकम" का अवधारणा तेजी से आकार लेती जा रही है जिसमें सभी नागरिक को सरकारी सहायता मिलेगी। यहाँ सरकारी सहायता न लेने या" गिव अप" करने का विकल्प रहता है।यह भारतीय न्याय व्यवस्था के उस कांसेप्ट पर बेस्ड है जिसमें" भले सौ दोषी छूट जाये पर एक भी निर्दोष को सजा न हो!" अर्थात भले ही कई अपात्रो को लाभ मिल जाये पर कोई पात्र न सरकारी सहायता से वंचित रह जाये। अपात्रो का नाम सार्वजनिक होने पर सामाजिक शर्म लाज से तथा शिक्षा के द्वारा उन्हें सरकारी सहायता छोड़ने हेतु राजी किया जा सकता है।
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