सरकारी खाद्यान्न खरीद में बढ़ती पारदर्शिता

          न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत किसानों से धान /बाजरा /ज्वार/मक्का की खरीद प्रारंभ  होने वाली है। वस्तुत न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के संबंध में हमेशा से किसानों की मांगें उठती रही है और सरकार द्वारा इस संबंध में निरंतर परिवर्तन और सुधार कर उन्हें अधिकाधिक लाभ पहुंचाने की कोशिश की जाती रही है। यहां यह बताना श्रेयस्कर होगा कि भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष किसानों  को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त कराने के उद्देश्य से खरीफ और रबी सीजन में कुल 23 फसलों  के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है। यह कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसा पर आधारित होता है। केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से वर्ष 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग  का गठन किया गया था। भारत में सर्वप्रथम 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी। तबसे हरेक साल इसमें सुधार और विस्तारीकरण के उपाय किए जाते रहे हैं। हालांकि उस समय देश में खाद्यान्न उत्पादन की अल्पता थी और  भारत खाद्यान्न आयातक देशों में गिना जाता था परंतु आज भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हैं और कई खाद्यान्नों का निर्यात करता है। ओपन मार्केट पालिसी आने के बाद किसानों को सीधे बाजारों में अपनी उपज बेचने का मौका मिला है। आज ई-नाम मंडी व्यवस्था के अंतर्गत पूरे देश के व्यापारी कहीं भी किसी भी मंडी के खाद्यान्न की खरीद बिक्री कर सकते हैं जिससे पारदर्शिता एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का शुभारंभ हुआ है।

        जाहिर है कि एम एस पी योजना की महत्ता के दृष्टिगत ही बदलते समय के साथ उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य तथा रसद विभाग द्वारा संचालित न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत किसानों से किए खाद्यान्न की खरीद विभाग के कंप्यूटरीकरण के साथ सबकुछ आनलाइन एवं पारदर्शी हो गया है। इस योजना से बिचौलियों की भूमिका समाप्त  कर दी गई है। पहले जिनके जमीन भी  नही थे या जो किसान  नहीं थे, वे भी किसी और की जमीन का कागज लगाकर, और किसी  दूसरे के बैंक खाते मे पैसा भेजकर योजना का गलत लाभ लेने की कोशिश करते थे। सर्वप्रथम  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसको लक्षित करते हुए आनलाइन ई उपार्जन सिस्टम  लागू किया गया,  जो एंड टू एंड कंप्यूटराइजेशन के मामले में देशभर में एक प्रकार का यूनिक सिस्टम बनकर उभरा है। इसके  लिए सर्वप्रथम किसानों के लिए आनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था की गई और उनके पंजीकरण को राजस्व विभाग के भू लेख पोर्टल से लिंक किया गया। इससे किसानों के जमीन की सत्यता प्रमाणित होने लगी और फर्जीवाड़ा और बिचौलियों पर रोक लग गई। भले ही किसानों के पास विकल्प था कि वे बतायें कि उनके कितनी भूमि पर फसल बोई गई है, परंतु सत्यापन का अधिकार तहसील प्रशासन को दिया गया है। इसप्रकार के  क्रास वेरीफिकेशन ने आंकड़ों की सत्यता को पहचानने मे मदद की है। राज्य सरकार  द्वारा हाल में ही प्रारंभ किये गये डिजिटल क्राप सर्वे के पूर्णकालिक हो जाने पर इस पंजीकरण सत्यापन को इससे लिंक करने की योजना है। इससे एक क्लिक से पता चल जाएगा कि किस खेत में कौन सी फसल लगाई गई है। हालांकि गन्ना विभाग से डाटा शेयरिंग का कार्य अभी भी किया ही जा रहा है। आनलाइन पंजीकरण को किसान अपने आधार लिंक मोबाइल नंबर के माध्यम से करा सकता है,  जिसपर ओटीपी के माध्यम से वेरीफिकेशन की व्यवस्था है। आनलाइन सिस्टम से पहले किसानों को चेक के माध्यम से भुगतान किया जाता था,जो बियरर होता था। इसे पहले एकाऊंट पेयी सिस्टम मे लाया गया फिर आरटीजीएस के माध्यम से सीधे किसानों के बैंक खाता मे भेजा जाने लगा। लेकिन सबसे फूल प्रूव सिस्टम तब लाया गया ,जब भारत सरकार के आनलाइन पोर्टल पी एफ एम एस के माध्यम से एनपीसीआई (नेशनल  पेमेंट कारपोरेशन आफ इंडिया) मैप्ड और वेरीफाइड बैंक एकाऊंट मे किसानों को उनकी उपज के मूल्य की  धनराशि भेजी जाने लगी।  यह ऐतिहासिक कदम था, देश मे पहलीबार किसी राज्य मे किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य पीएफएमएस सिस्टम से दिया जाने लगा है। अन्य राज्यों ने भी अब इसी को अपनाने का निश्चय किया है। क्रय केंद्रों  पर भी वास्तविक किसानों से खरीद हो यह सुनिश्चित करने के लिए ई पाप (इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट आफ परचेज) मशीन की व्यवस्था की गई है जिसपर किसान अपना बायोमेट्रिक करने के बाद ही अपनी उपज बेच सकता है। परिवहन और हैंडलिंग ठेकेदारों की नियुक्ति शत प्रतिशत ई टेंडर के माध्यम से आनलाइन किया जा रहा है। विभाग ने  आनलाइन क्रय के साथ साथ आन लाइन बिलिंग सिस्टम लागू करने का निश्चय कर खरीद प्रक्रिया को पूरी तरह से पेपरलेस बनाने की दिशा मे कदम बढ़ा दिया है। एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य के सभी क्रय केंद्रों, राइसमिलों और भारतीय खाद्य निगम के भंडारण डिपो की जियो टैगिंग करायी गयी है ,जिससे उनपर आनलाइन मानिटरिंग की जा सके साथ मे इन सबके मध्य मनमाने तरीके से दूरी को दर्शा कर फर्जीवाड़ा को रोका है। क्रय  केंद्रों से राइस मिलों की आनलाइन टैगिंग एवं जीपीएस युक्त वाहनों के माध्यम से खाद्यान्न प्रेषण करने की व्यवस्था लागू की गई है जिसकी आनलाइन ट्रैकिंग भी हरेक स्तर से की जा सकती है। पूरे सरकारी खरीद सिस्टम का एंड टू एंड कंप्यूटराईजेशन के माध्यम से ई उपार्जन सिस्टम बनाया गया है ,जिसमे किसानों से खाद्यान्न खरीद के आनलाइन पंजीकरण सिस्टम से लेकर टोकन जेनरेशन, तयशुदा तिथि को क्रय केंद्र पर खरीद, आनलाइन जेनरेटेड रसीद, आनलाइन वेरिफिकेशन के बाद पी एफ एम एस (पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम) के माध्यम से सीधे बैंक खाते मे भुगतान, राइसमिलों द्वारा आनलाइन प्राप्ति/ प्रेषण भारतीय खाद्य निगम डिपो पर प्राप्ति सभी एक आनलाइन चेन सिस्टम से जोड़ दिया गया है, जो पूर्ण पारदर्शी है। पब्लिक ग्रिवांसेस सिस्टम के अंतर्गत टाल फ्री नंबर, काल सेंटर के माध्यम से पब्लिक फीडबैक लेना सुधार की दिशा मे बढ़ता कदम है। राज्य सरकार ने धान /गेंहू खरीद के साथ साथ गत दो वर्षों से ज्वार/बाजरा/मक्का की खरीद प्रारंभ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना का विस्तारीकरण प्रारंभ किया है। हालांकि नेफेड और पीसीएफ के माध्यम से दलहन /तिलहन खरीद में भी तेजी लायी गई है। जाहिर है इस योजना की कमियों में निरंतर सुधार करते हुए अधिकाधिक किसानों तक इस योजना के लाभ पहुंचाने का अथक प्रयास जारी है।

        जहां  तक न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना का प्रश्न है तो उत्तरप्रदेश में वर्ष 2023-24 में लगभग 10 लाख किसानों से 65 लाख मीट्रिक टन धान/गेंहू/ बाजरा/ ज्वार/ मक्का की सरकारी खरीद की गयी है। उत्तर प्रदेश में लगभग 2.33 करोड़ किसान हैं। इनमें 1.85 करोड़ सीमांत और लगभग तीस लाख लघु किसान हैं। इसके अनुसार  लघु व सीमांत किसानों की संख्या 2.15 करोड़ है, जो कुल किसानों का लगभग 93% है। स्पष्ट  है कि अधिकांश सीमांत किसानों द्वारा अपने परिवार के भरण पोषण के लायक ही खाद्यान्न का उत्पादन किया जाता है और उनके पास अधिक मार्केटेबल सरप्लस खाद्यान्न बाजार में बेचने के लिए नहीं होता है । अधिकतर लघु और बड़े किसानों द्वारा ही क्रय केंद्रों पर खाद्यान्न बेचा जाता है जो कुल किसानों का लगभग 20% है। इसके लिए सरकार द्वारा जारी क्रय नीति में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि लघु और सीमांत किसानों से प्राथमिकता के आधार पर खरीद की जाय। धान खरीद का लक्ष्य राज्य के कुल धान उत्पादन 185 लाख मीट्रिक टन मे से मात्र 55 लाख मीट्रिक टन का ही है। जाहिर है लगभग 70 प्रतिशत खाद्यान्न तो ओपन मार्केट मे ही बिकता है, लेकिन  यह भी एम एस पी से प्रभावित  होता है।

             न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के संबंध में गठित शांता कुमार कमेटी के अनुसार मात्र 6 प्रतिशत किसान ही अपनी उपज को इस योजना  के अंतर्गत सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचते हैं, शेष ओपन मार्केट मे बेचते हैं। इसका लाभ बड़े किसानों को ही मिल पाता है। हालांकि  कुछ समय पूर्व इस निष्कर्ष को सतही मानते हुए आइ आइ टी दिल्ली  की रीतिका खेड़ा, प्रांकुर गुप्ता  और सुधा नारायण द्वारा एक शोध पत्र जारी किया गया है जिसके अनुसार लगभग 15-18 प्रतिशत किसानों द्वारा इसका लाभ उठाया जाता है क्योंकि सभी किसानों द्वारा गेंहू/ धान का उत्पादन नहीं किया जाता है। तो हम यदि धान/गेंहू उत्पादन करने वाले किसानों में इसकी तुलना करेंगे तो सहभागिता बढ़ जाती है। इस शोध पत्र में आंकड़ों के साथ यह भी कहा गया कि  जिन राज्यों ने खरीद व्यवस्था की विकेंद्रीकृत प्रणाली अपनाई है जैसे छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि में लगभग 30-35 प्रतिशत किसानों द्वारा इस योजना का लाभ  उठाया जा रहा है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश आदि में यह प्रतिशत भी उच्च है। यहां यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि यदि किसानों को मार्केट में अच्छा प्राइस मिल रहा है तो वो भी इसी योजना का प्रतिफल है, परंतु हम आंकड़ों में उन किसानों को शामिल नहीं करते। उदाहरण स्वरुप गतवर्ष 90% गेंहू बेचने वाले किसानों ने ओपन मार्केट को चुना क्योंकि यहां मूल्य एम एस पी से अधिक था, अर्थात यहां तुलना भी हम एम एस पी से ही करते हैं। गत वर्षों में गेंहू खरीद के आंकड़ों पर हम नजर डालते हैं तो किसानों को ओपन मार्केट में न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक पैसा मिला है। गेंहू को वो तो सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचना ही नहीं चाहते, क्योंकि उससे ज्यादा मूल्य पर व्यापारी उनके घरों से उठाकर ले जाते हैं। इसतरह से देखें तो यहां पर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना अपना उद्देश्य प्राप्त कर रही है और किसानों को उससे अधिक मूल्य मिल रहा है। एम एस पी का लाभ प्राप्त करने वाले किसानों के सीमित संख्या होने के कारण कभी कभी एम एस पी के बारे  में कहा जाता है कि यह औचित्यहीन प्रतीत होता है परंतु बात इतनी सीधी नही है। प्रश्न यहाँ यह उठता है कि यदि एम एस पी यदि औचित्यहीन है तो फिर भला आज किसान इसके लिए उद्वेलित क्यों हैं? जाहिर है उन्हें पता है कि मंडियों मे उनके खाद्यान्न की निलामी जब होती है तो उसकी बोली का आधार एम एस पी ही होता है। प्रत्येक वर्ष बोली का रेट स्वतः एम एस पी मे हुई वृद्धि के अनुरूप बढ़ जाता है। वस्तुतः पीडीएस और एम एस पी मार्केट रेट कंट्रोल करता है। पीडीएस के लाभार्थी भी तो एक दूसरे छोर से एम एस पी योजना से ही जुड़े हैं क्योंकि यहां खरीदे गए खाद्यान्न का उपयोग ही अंत्योदय और पात्र गृहस्थी लाभार्थियों के मध्य किया जाता है।

           

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