महंगी शादियों का अर्थशास्त्र
अक्सर लोग अपने घर की शादियों में जमकर खर्च करते हैं। इनमें से जो हैसियत और रसूख वाले हैं वो अपना स्टेटस मेंटेन करने के लिए ऐसा करते हैं तो वो लोग भी, जिनकी हैसियत उतनी नहीं है, उनसे प्रभावित होकर सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए खर्च करते हैं। प्रदर्शन की इच्छा तो गरीबों की भी होती है, तो वो इसे पूरा करने के लिए कर्ज में डूबे जाते हैं। पिछले दिनों अंबानी परिवार के वैवाहिक समारोहों को लेकर मीडिया में शादियों में किया जानेवाला खर्च, प्रदर्शन और उसकी उपयोगिता बहस का मुद्दा बन गया है। लेकिन इसका एक पक्ष और है जो हमारी बाजार और हमारे देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार अंबानी परिवार की इस शादी में लगभग 5 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए जो उनकी हैसियत का 0.5 प्रतिशत ही था। अक्सर सामान्य लोग अपने घर की शादियों में अपनी हैसियत का 5 से 15 प्रतिशत तक खर्चा कर लेते हैं।
शादियों में किया गया यह ख़र्च भी अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है। इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में विवाहों पर सालाना करीब 3.75 लाख करोड़ रुपये खर्च होता है। विवाहों का यह बाजार प्रतिवर्ष 25 से 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। देश में हर साल करीब एक करोड़ शादियां होती हैं। आमतौर पर एक आदमी अपनी जिंदगी की 20 प्रतिशत कमाई शादी पर खर्च कर देता है, जिसमे सबसे ज्यादा हिस्सा सोना- हीरा और आभूषणों पर किया जाता है। शादी समारोहों के दौरान अकेले आभूषणों पर 2.9 से 3.3 लाख करोड़ रुपये ख़र्च किए जाते है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार इस वर्ष विवाहों के सीजन में 139 टन सोने की मांग का अनुमान है। शादी के समारोह स्थल पर कुल खर्च का 13-18 प्रतिशत खर्च किया जाता है। छोटे बड़े शहरों में मैरिज हालों की लगा बढ़ती संख्या से जाहिर है कि यह इंडस्ट्री बढ़ रही है। बड़े होटलों के अलावा डेस्टीनेशन वेडिंग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। पर्यटन स्थलों के अलावा ऐतिहासिक महलों में शादियां आयोजित करने का प्रचलन बढ़ा है। अंबानी परिवार के भव्य सेट बनाकर शादी कराने के बाद तो बड़ी शादियों में फिल्मी सेटों का प्रचलन बढ़ने की संभावना है। शादियों में खानपान पर कुल खर्च का लगभग 20 से 25 प्रतिशत खर्च होता है जिससे कैटरिंग एजेंसी सहित खान-पान की वस्तुओं का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इसी प्रकार कपड़ों पर 10 से 15 प्रतिशत खर्च किया जाता है। कपड़ा इंडस्ट्री के जानकारों के अनुसार लोग शादी के सीजन में जमकर खरीदारी करते हैं। इसमें केवल दूल्हा-दुल्हन ही नहीं बल्कि उसके परिवार या शादी के मेहमान भी शामिल हैं। इसी तरह डेकोरेशन पर 7 से 11 प्रतिशत खर्च किया जाता है। इसके अतिरिक्त मेकअप पर 3 से 8 प्रतिशत, फोटोग्राफी पर 5 से 7 प्रतिशत, हनीमून पर 8 से 11 प्रतिशत और दूसरी चीजों पर 10 प्रतिशत खर्च हो रहा है। मनोरंजन पर 1.9 से 2.1 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं। अभी अंबानी परिवार की शादी में जिसतरह से देशी विदेशी कलाकारों ने प्रदर्शन किया , उसी प्रकार सभी आदमी अपनी हैसियत के अनुसार शादियों में लोगों के मनोरंजन का इंतजाम करते हैं, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता है।
भारत में नवम्बर 2023 माह से लेकर मार्च 2024 तक लगभग 38 लाख से अधिक शादियों के आयोजन सम्पन्न किए गए , जिनमें लगभग 4.75 लाख करोड़ की राशि का व्यय होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 35 लाख शादियों पर 3.75 लाख करोड़ रुपए की राशि का व्यय हुआ था। कन्फेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुसार भारत में इस वर्ष विवाहों के मौसम में सबसे अधिक खर्च करने का विश्व रिकार्ड बनाया जा सकता है। पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष एक लाख करोड़ रुपए अधिक राशि विवाहों पर खर्च होने जा रही है। स्पष्ट है कि इतनी बड़ी व्यय की जानेवाली धनराशि भारतीय बाजारों को बूस्ट अप करता है। इसमें लगे करोड़ों लोगों के रोजगार सृजन में योगदान देता है। मैरिज इंडस्ट्री के इस विशाल आकार को देखते हुए ही भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल मे लोगों से आग्रह किया है कि विदेशों में की जा रही डेस्टिनेशन वेंडिंग के बजाय घरेलू आयोजन स्थलों का चयन करें जिससे यहां रोजगार सृजन हो और बाजार में प्रगति हो।
असल में भारतीय परिवार अपने यहां होने वाली विवाहों के द्वारा अपनी दौलत, रुतबा और साख को समाज को दिखाने की कोशिश करते हैं। यहां तक कि इस दिखावे के लिए अनेक परिवार क़र्ज़ लेकर भी बड़ी रकम जुटाते हैं और ख़र्च करते हैं। हिंदू परिवार की विवाहों में सगाई, संगीत ,हल्दी, रिसेप्शन जैसी शादी की रस्में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती हैं। वहीं मुस्लिम परिवार में होने वाले विवाहों में 'मेंहदी', 'निकाह' और 'वलीमा' जैसी रस्में शामिल हैं। क्रिश्चियन शादियों में सगाई, शादी और रिसेप्शन समारोह शामिल होते हैं। स्पष्ट है कि भारतीय समाज में हरेक शादी को शान का प्रतीक माना जाता है। हर परिवार अपनी क्षमता के अनुसार विवाह समारोह की योजना बनाता है और उनकी कोशिश यही होती है कि यह आयोजन भव्य और यादगार दिखे। प्रत्येक परिवार अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और सामाजिक दायरे में अपनी हैसियत दिखाने के लिए भी बढ़ चढ़कर ख़र्च करने में दिलचस्पी दिखाता है। जेफरीज की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में शादी समारोहों से जुड़ा बाज़ार करीब 10.7 लाख करोड़ रुपये का है, जो देश में खाद्य और किराना बाज़ार के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत में शादी का बाजार अमेरिका के 5.8 लाख करोड़ के शादी के बाजार से लगभग दोगुना है लेकिन चीन के 14.1 लाख करोड़ के बाजार से छोटा है। विवाह समारोहों की संख्या को देखते हुए भारत में हर साल 80 लाख से एक करोड़ तक विवाह समारोह होते हैं, जबकि चीन में यह आंकड़ा 70 से 80 लाख प्रति वर्ष और अमेरिका में 20-25 लाख है। स्पष्ट है कि प्रति शादी चीन और अमेरिकी परिवार भारतीयों की तुलना में ज़्यादा ख़र्च करते हैं। भारतीय विवाह समारोहों के दौरान परिवार पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ बहुत बड़ा होता है। भारत में विवाहों पर औसतन 12.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। पिछले कुछ सालों में औसतन शादियों पर खर्च भी बढ़ा है। ऑनलाइन विवाह विक्रेता निर्देशिका ने 2021 और 2022 के लिए अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें 14.6 प्रतिशत की बढ़त देखी गई है, जहां खर्च बढ़कर 15 लाख रुपये हो गया है। धूमधाम से होने वाली विवाहों पर औसतन 20-30 लाख रुपए ख़र्च होते हैं, लेकिन एक शादी पर ख़र्च होने वाला औसत व्यय यानी 12.5 लाख रुपये, भारत की जीडीपी की प्रति व्यक्ति आय का लगभग पांच गुना है। अमेरिका में विवाहों पर होने वाला ख़र्च वहां की शिक्षा पर होने वाले ख़र्च का आधा है जबकि एक आम भारतीय शिक्षा की तुलना में शादी पर दोगुना ख़र्च करते हैं। इसके पीछे भारतीय सनातन संस्कृति के अंतर्गत शादी के समय विभिन्न प्रकार के संपन्न किए जानेवाले संस्कारिक आयोजन हैं। जबकि पश्चिमी देशों में तो विवाह नामक संस्था ही विलुप्त हो रही है। लव मैरिज और लिव इन रिलेशनशिप आदि ने वहां वैवाहिक समारोहों के आयोजन का औचित्य ही समाप्त कर दिया है।
हालांकि इसके साथ ही देश में ऐसे युवाओं की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी है , जो सादगी से शादी करके इसके ख़र्च कम करना चाहते हैं। अक्सर मध्यम वर्ग अमीरों की भव्य, असाधारण शादियों की ओर आकर्षित होता है। ऐसी महंगी शादियाँ समाज में दबाव पैदा करती हैं। अगर उसके लिए कर्ज लेने की आवश्यकता हो तो उसे भी लेते हैं। उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित होकर युवा पीढ़ी जीवन का भरपूर आनंद लेना चाहती है। लोगों के व्यवहार में बदलाव के कारण ऐसे भव्य विवाह समारोह आयोजित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अमीर और प्रसिद्ध लोगों की हाई-प्रोफाइल शादियां मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए अनुकरणीय रूप से ऊंचे मानक स्थापित कर देती हैं, जिससे अनावश्यक सामाजिक दबाव पैदा होता है। इन महंगी शादी के खर्चों ने अनेक गरीब परिवारों को गुलामी में धकेल दिया है। शादी के खर्चों को पूरा करने के लिए लिए जाने वाले ऋण पर ब्याज दरें बहुत अधिक होती हैं, जिसके कारण कई परिवार कर्ज चुकाने के लिए बंधुआ बन जाते हैं। एक मसला यह भी सामने आया है कि लड़का पक्ष चुंकि आफिशियली दहेज नहीं ले सकता तो वह अब लड़की के पिता पर शादी में अधिकाधिक खर्च कराने को मजबूर करता है। इधर लड़की का पिता भी चुंकि अपनी संपत्ति में बेटी को हिस्सा नहीं देता , इसलिए उसकी शादी में अधिकाधिक खर्च कर अपने मन को तुष्टि प्रदान करता है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि एक आम भारतीय अपनी शादी पर औसतन 12 लाख रूपए खर्च करता है। जबकि भारतीयों की प्रति व्यक्ति सालाना आय 1 लाख 72 हजार रुपए है। अर्थात एक आम भारतीय शादी पर अपने 7 साल की कमाई खर्च कर देता है। वर्ष 2017 में बिहार के सुपौल से लोकसभा सांसद रंजीता रंजन ने शादी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने संबंधी एक बिल लोकसभा में पेश किया था। इसमें मेहमानों की संख्या सीमित करने के अलावा 5 लाख रुपये से अधिक खर्च करने पर रोक लगाने की भी सिफारिश की गई थी। अगर किसी ने तय की गयी राशि से अधिक पैसे खर्च किए तो उस पर 10% का टैक्स लगाया जाए और टैक्स का ये पैसा गरीब लड़कियों की शादियों पर खर्च किया जाए। इसके द्वारा सरकार शादी में आने वाले मेहमानों- रिश्तेदारों और बारात की संख्या के साथ-साथ शादी और रिसेप्शन में परोसे जाने वाले व्यंजनों की भी सीमा तय कर सकती थी ताकि शादियों में होने वाली खाने की बर्बादी पर लगाम लगाई जा सके। हालांकि यह बिल संसद में पास नहीं हो सका। महंगी शादियों के बोझ से मुक्ति के लिए सामूहिक विवाहों का आयोजन एक अच्छा कदम है। इसे सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है। निजी संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिशा में प्रयास किया जा रहा है। मंदिरों में शादी ,कोर्ट मैरिज इत्यादि ऐसी विधायें जिससे खर्च से बचा जा सकता है।
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