निर्यात में कृषि उत्पादों की बढ़ती भूमिका
स्वतंत्रता प्राप्ति काल से लेकर 1980 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था और यह एक प्रमुख खाद्यान्न आयातक देश के रूप में जाना जाता था, परंतु ग्रीन रिवोल्यूशन के बाद स्थिति पलट सी गई है। भारत अब आयातक से अन्नदाता और निर्यातक बन गया है। वर्ष 2023-24 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन लगभग 3,288.52 लाख टन हुआ है, जो पिछले पांच वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन 3,077.52 लाख टन से 211 लाख टन अधिक है, अर्थात निरंतर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि होती जा रही है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसकी निर्यात की स्थिति से लगाई जा सकती है जो विदेशी मुद्रा के भंडार को सशक्त करता है। वर्ष 2023-24 में हालांकि कृषि निर्यात 48.9 बिलियन डॉलर तक तो पहुंच गया , लेकिन यह वर्ष 2022-23 के 53.2 बिलियन डॉलर से कम था। इस वर्ष को अपवाद स्वरूप ही माना जा सकता है क्योंकि निर्यात कम होने के पीछे समसामयिक वैश्विक संकट है, जिसका असर लगभग सभी देशों पर पड़ा है। परंतु यदि हम पिछले दशकों से इसका तुलना करें तो भारत के निर्यात में कृषि उत्पादों का हिस्सा निरंतर बढ़ रहा है। भारत का कृषि क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि और संबद्ध उत्पाद, समुद्री उत्पाद, डेयरी उत्पाद और कपड़ा और संबद्ध उत्पादों का निर्यात करता है।चावल भारत से सबसे अधिक निर्यात किया जाने वाला कृषि उत्पाद है। वर्ष 2024 में चावल और समुद्री उत्पादों का कृषि निर्यात में 35 प्रतिशत हिस्सा था। जनवरी 2024 तक भारत के कृषि उत्पादों के सबसे बड़े आयातक देश अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश थे। संयुक्त राज्य अमेरिका 4.20 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ भारतीय कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक देश है, जिसकी कुल निर्यात में 10.89 प्रतिशत भागीदारी थी।भारत ने वर्ष 2023 में कृषि उत्पादों में दुनिया के आठवें सबसे बड़े निर्यातक के रूप में अपनी स्थिति बनाये रखी है। हालांकि इस वर्ष भारत के निर्यात में गिरावट का कारण भू-राजनीतिक समस्या उदाहरण स्वरूप लाल सागर संकट और रूस-यूक्रेन युद्ध को माना जा सकता है, जिसने वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त, भारत ने गेहूं, गैर-बासमती चावल और चीनी पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया, जिससे समग्र रुप से कृषि निर्यात मे कमी आई है ।
यह सब भारत सरकार के द्वारा अपनाई गई एक सशक्त कृषि निर्यात नीति की बदौलत हो पाया है। भारत सरकार ने कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि लाने के उद्देश्य से मजबूत निर्यात क्षमता वाले 50 कृषि उत्पादों के लिए एक सशक्त नीति बनाई है। निर्यातकों को तकनीकी और व्यवसायिक रूप से सक्षम और सशक्त बनाने के लिए कृषि उत्पादों के परीक्षण की सेवाएं प्रदान करने के लिए लगभग 220 प्रयोगशालाओं को मान्यता प्रदान की है। इतना ही नहीं वियतनाम, अमेरिका, बांग्लादेश, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, सऊदी अरब, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, चीन, जापान और अर्जेंटीना आदि देशों के भारतीय दूतावासों में कृषि-प्रकोष्ठों की स्थापना भी की है। सरकार द्वारा कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई कृषि निर्यात नीति का मुख्य उद्देश्य कृषि निर्यात बास्केट और निर्यात क्षेत्रों में विविधता लाना, उच्च मूल्यवर्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना, स्वदेशी, जैविक, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना, बाजार तक पहुंच बनाने के लिए एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना और किसानों को विदेशी बाजार में निर्यात अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम बनाना है। इन सबके चलते अप्रैल-नवंबर 2023 की अवधि में कई प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में में पिछले वर्ष की तुलना में पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जैसे केले में 63 प्रतिशत, दालों मे 110 प्रतिशत और केसर और दशहरी आम में क्रमश: 120 प्रतिशत और 140 प्रतिशत और बासमती चावल के निर्यात मूल्य में 19 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई , जो पिछले वर्ष के 3.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 3.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। ताज़ा फलों के निर्यात में भी जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। भारत द्वारा पिछले वर्ष के 102 देशों की तुलना में आज 111 देशों को कृषि उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है।
जिन कृषि उत्पादों के क्षेत्र में अभी निर्यात वृद्धि की संभावनाएं हैं, उनमें पशुपालन, डेयरी, फिशरीज और बागबानी का क्षेत्र है। बागवानी का क्षेत्र पूरी तरह से खुला पड़ा हुआ है। हरित क्रांति की सफलता के बाद ग्रीन रिवोल्यूशन प्लस की बात चल रही है जो बागवानी से संबंधित है। भारत के पास अंगूर और केलों के निर्यात में बड़े लक्ष्य प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर है। 2023-24 में देश ने 41.71 करोड़ डॉलर के चार लाख टन अंगूर का निर्यात किया। ऐसा सबकुछ विश्वसनीय कोल्ड चेन के साथ ट्रेसेबिलिटी के सिस्टम से यह संभव हो सका। इसके अतिरिक्त जिन उत्पादों में हम वैश्विक रूप से अन्य देशों के प्रतिस्पर्धी हैं, उनको मजबूत बनाने के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचा बनाना आवश्यक है। हालांकि भले ही फसलों में विविधता लाने के प्रयास सफल हो जाएं , फिर भी चावल उत्पादन और निर्यात घटने की संभावना नहीं है क्योंकि यह किसानों के लिए लाभकारी है और पश्चिम एशिया, यूके तथा अमेरिका में इसकी काफी ज्यादा मांग भी है। इसके लिए यूरोप और अमेरिका में जिन कीटनाशकों की मंजूरी नहीं है, उनके प्रयोग पर रोक लगानी होगी। युरोपीय युनियन ने अभी तक बासमती चावल को जीआई उत्पाद के रूप मान्यता नहीं दी है। इससे इसकी अनूठी पहचान, प्रीमियम स्टेटस और बाजार मूल्य पर विपरीत असर पड़ता है। गतवर्ष कम निर्यात का कारण गैर बासमती सफेद चावल और टूटे चावलों पर प्रतिबंध लगाना भी था, जो मुख्य रूप से अफ्रीका को निर्यात किया जाता है। मसालों के निर्यात से देश को 2023-24 में 4.5 अरब डॉलर की कमाई हुई लेकिन कीटनाशक अवशेषों, माइक्रोबॉयल प्रदूषण और शुद्धता के सख्त वैश्विक मानकों के कारण यह और ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। मई 2024 में हांगकांग, सिंगापुर और नेपाल ने प्रतिष्ठित भारतीय कंपनियों से मसाले आयात करने पर रोक लगा दी थी, क्योंकि उनमें एथिलीन ऑक्साइड की मात्रा सीमा से अधिक थी। विश्व में प्रसंस्कृत खाद्य के निर्यात में भारत का हिस्सा इस समय मात्र 1-2 प्रतिशत है। सरकार को इसके लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करते हुए विकसित बाजारों में मजबूत ब्रांडिंग अभियान चलाने की दिशा में काम कर रही है। इसके अंतर्गत भारतीय उत्पादों की विविधता और उनकी गैर जीएमओ (जेनेटिक रूप से संशोधित ऑर्गेनिज्म) क्वालिटी पर जोर दिया जा रहा है। जब एपीडा अर्थात कृषि और प्रसंस्करण खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ताजा फलों और सब्जियों के लिए स्ट्रैटेजिक एनवायरनमेंटल एसेसमेंट प्रोटोकॉल को अंतिम रूप दे देगा तो भारत के पास इस क्षेत्र में अपना निर्यात बढ़ाने का अवसर होगा। यद्यपि गेहूं, चावल और चीनी के भारतीय निर्यात को विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के साथ अन्य देशों की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए कृषि उत्पादों के निर्यात में विविधता लाने की जरूरत है।
कृषि उत्पादों के निर्यात में उत्तरप्रदेश द्वारा एक रोड मैप निर्धारित कर माडल बनाने का काम किया गया है। एक सुदृढ़ और विकासपरक नीति के चलते उत्तरप्रदेश से कृषि उत्पादों का निर्यात काफी तेजी से बढ़ा है। पिछले वर्ष यूपी देश में पांचवें स्थान पर था, लेकिन अपने संसाधनों को बेहतर बनाकर व सही दिशा में प्रयासों के बल पर पहली बार इस वर्ष तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। अब कृषि निर्यात के क्षेत्र में सिर्फ उत्तर प्रदेश से आगे महाराष्ट्र और गुजरात हैं। पिछले एक वर्ष में कृषि निर्यात के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश को रिकॉर्ड साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त वृद्धि मिली है। इस प्रकार प्रदेश के निर्यात मूल्य में 18.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष प्रदेश से 18,991.45 करोड़ रुपये के कृषि उत्पादों का निर्यात किया गया था, जो 2023-24 में बढ़कर 22,528.56 करोड़ रुपये पहुंच गया है। इसमें सबसे अधिक फल एवं सब्जियों के निर्यात में 475 प्रतिशत एवं गेहूं के निर्यात में 144.85 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि कुछ अन्य कृषि उत्पाद जैसे प्रसंस्कृत फलों के निर्यात में 44.45 प्रतिशत तथा फ्लोरीकल्चर के निर्यात में 37.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। श्रीअन्न (मोटा अनाज ) के निर्यात में 36.05 प्रतिशत, बासमती चावल में 33.63 प्रतिशत,आम के निर्यात में 28.34 की वृद्धि हुई है।इधर मोटा अनाज अर्थात श्री अन्न की पश्चिमी देशों में जबरदस्त मांग बढ़ी है। उत्तरप्रदेश सरकार ने विभिन्न देशों को अपने अधिकारी भेज कर न सिर्फ वहां से इन्वेस्टमेंट प्राप्त करने का प्रयास किया है बल्कि उत्पादों के लिए मार्केट भी तलाश किया है।विदेशी मांगों के अनुरूप प्रदेश में बेहतर क्वालिटी के उत्पाद तैयार करने पर राज्य सरकार द्वारा विशेष ध्यान केन्द्रित किए जाने के कारण भी यह सफलता हासिल हुई। पूर्वी उत्तर प्रदेश से ताजी और उच्च गुणवत्ता की सब्जियां एवं आम वाराणसी पैक हाउस के माध्यम से लंदन समेत यूरोप के अन्य देशों को निर्यात शुरू किया गया है। वाराणसी हवाई अड्डे से सीधे दुबई व खाड़ी के अन्य देशों को भी सब्जियां व अन्य फल भेजे जाने लगे हैं। चंदौली से काला चावल ऑस्ट्रेलिया को निर्यात किया गया है,जबकि वाराणसी से कतर को तथा मिर्जापुर से सेनेगल को चावल का निर्यात किया जा रहा है। बलिया, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, लखनऊ से हरी मिर्च एवं अन्य ताजी सब्जियां, मेरठ, रामपुर, सहारनपुर और लखनऊ से आम, फर्रुखाबाद व आगरा से आलू, बागपत से शहद, कानपुर से मूंगफली, बिजनौर से खाड़ी देशों को गुड़ तथा हाथरस से न्यूजीलैण्ड को मक्खन का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जा रहा है।इन निर्यातों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कृषि उत्पादों के वैज्ञानिक भंडारण के लिए ग्रामीण गोदामों की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं, साइलो स्थापित किये जा रहे हैं। अगले वर्ष से जेवर में एयरपोर्ट शुरू हो जाने के बाद कृषि निर्यात में और अधिक वृद्धि होगी। असल में उत्तरप्रदेश ने जिस तरह कृषि उत्पादों के निर्यात में प्रगति लाई है उस माडल को अपनाकर देश के अन्य राज्यों में भी प्रगति लाई जा सकती है ।
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