पुस्तकें जो मैने इस साल पढी हैं

किताबों के पढने के दृष्टिकोण से यह वर्ष मेरे लिए अविस्मरणीय रहा है। हिंदी किताबों के प्रकाशन और बिक्री के नजरिए से  इसे पुनर्जागरण काल भी कह सकते हैं जिसमें एक तरफ प्रेम  कहानियों पर आश्रित" नयी वाली हिंदी " टैग का महत्वपूर्ण योगदान है तो दूसरी ओर विषयों को विविधता का दौर भी है।हिंदी किताबों की जबरदस्त बिक्री हो रही है, यह आक्रामक मार्केटिंग का दौर है।सबसे पहले जिसकी चर्चा जरूरी समझता हूँ वह भगवंत अनमोल की" जिंदगी फिफ्टी फिफ्टी"  है, जो थर्ड सेक्स की जिंदगी और समस्याओं को सामने लाने वाली बेहतरीन पुस्तक है और इसे काफी अच्छे तरीके रचा और संजोया गया है। विवाहेतर जिंदगी की कथाओं को अपने मे समाहित किए हुए" विजयश्री तनवीर की" अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" बेहतरीन और विशिष्ट कहानियों को पाठकों के समक्ष लाता है। पुस्तक की अंतिम कहानी तो संकलन का सरताज बनकर उभरती है। कहानियों मे वनलाईनर की भरमार है जैसे पति- पत्नी संवाद-" हम आपस मे इतना क्यों लड़ते हैं?  क्योंकि दूसरों से ना लड़ें।" त्रिलोक नाथ पांडेय की " प्रेमलहरी" ऐतिहासिक गद्य और गल्प पर बुनी गयी कथा है जिसमे मुगलिया सल्तनत के हरम, समाज, सुल्तानों की जिंदगी और उसमे काफिरों के संबंधों को बड़ी कुशलता के साथ उभारा गया है। इस साल पढी गयी पुस्तकों मे विवेक कुमार की" अर्थला-- सिंधु संग्राम गाथा" ऐतिहासिक गाथाओं को नये तरीके बुना और रचा गया है। वस्तुतः अमीश त्रिपाठी के " शिवा ट्रायोलोजी" की सफलता के बाद हिंदी पुस्तकों मे इसप्रकार के कथाओं को सामने लाने का ट्रेंड बड़ी तेजी से आगे बढा है जिसमे संदीप नैय्यर की" समरसिद्धा" भी शामिल है। हालांकि इससे पहले अंग्रेजी मे क्रिस्टोफर सी डायल, अशोक के बैंकर और अश्विन सांघी जैसे कथाकारों ने इस विधा मे काफी उपन्यास लिखे है और ये  पसंद भी की गयी है। डिफरेंट शेड्स की बातें करें तो संदीप नैय्यर की" डार्क नाइट्स" एक इरोटिक लव स्टोरी है जो हिंदी मे " ई एल जेम्स" की कथाओं को आगे बढाती है।बहुचर्चित "नयी वाली हिंदी" जोनर मे सत्य व्यास की बहु प्रतीक्षित " चौरासी" पढ़ी है, जो सन् उन्नीस सौ चौरासी के सिख दंगो की पृष्ठभूमि मे बोकारो स्टील सिटी के अंदर हिंदू लड़के और सिख लड़की के प्रेम की कहानी है। इस नयी वाली हिंदी मे भाषागत या शिल्पगत नयापन तो कुछ विशेष नही है, बस आक्रामक मार्केटिंग के जरिए हिंदी किताबों के बिक्री और प्रकाशन मे तेजी और पाठकों के मध्य लोकप्रिय करने मे इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। हालांकि इसमे विविधता की कमी है, प्रेम मुख्य विषय है।मुख्यधारा से पृथक एम जोशी हिमानी  की" हंसा आएगी जरूर" एक जबरदस्त उपन्यास है। सलिल सुधाकर की" बदनाम औरत" और अभिलेख द्विवेदी की " चार अधूरी बातें" डिफरेंट जोनर की किताबें हैं।किताबें तो इस साल मैने अनेक पढी है जैसे गौतम राज ऋषि की" हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज, आपरेशन ब्लु स्टार का सच, अजीत भारती की" घरवापसी",गीताश्री का" हसीनाबाद" गुलजार का " दो लोग" ओमप्रकाश राय  का" काशी टेल" हुसैन जैदी का" ब्लैक फ्राइडे" ,नीरज मुसाफिर का"सुनो लद्दाख", कौस्तुभ आनंद चंदोला का" संन्यासी योद्दा"प्रियंका ओम की" मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है, राकेश मढोतरा की" दिल ढूंढता है, रत्नेश्वर की" रेखना मेरी जान इत्यादि। इन सबमे जो सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो " अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" और " जिंदगी फिफ्टी- फिफ्टी।अभी कई किताबें जो आने को तो आ चुकी है और पढने के लिए क्यु मे लगी है उनमे यतीन्द्र मिश्र की" लता सुर गाथा, अशोक पांडेय की" कश्मीर नामा" प्रमुख है। इनको पढने को कई बार सोचा पर पुस्तक की मोटाई देखकर रुक जाता हूँ।इसीकारण से " आखिरी मुगल, भारत गांधी के बाद "जैसी किताबें भी रुकी हुई है। यहां राजेंद्र यादव, अज्ञेय, प्रेमचंद, बंकिमचंद्र इत्यादि क्लासिक रचनाकारों के किताबों का जिक्र करना लाजिमी है पर उनकी तुलना नही की जा सकती। आशा है आनेवाला साल भी किताबमय ही रहे और हम जिंदगी को उसी की आंखों से देखते रहें।

Comments

  1. मेरी पुस्तक पढ़ने के लिए धन्यवाद

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