ले के रहेंगे आजादी और गदहा विमर्श

बात निकली है तो दूर तलक जायेगी। " गाय विमर्श" से "गदहा विमर्श" की ओर शिफ्टेड राजनीति और भेड़चाल वाली मीडिया इसे बिना अंजाम तक पहुंचाये मानेगी नही! अब चाहे इलेक्शन खत्म हो जाय पर सुपर स्टार से की गई गुजारिश ,फिल्मिस्तान को भी राजनीति मे घसीट कर रहेगी। अब बेचारे उन गदहो और सुपर स्टार का क्या दोष? वो तो सिर्फ पर्यटन का प्रचार कर रहे थे" कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात मे!" अब यहाँ कोई स्पेशिफाईड जानवर होता तो यहाँ के ब्रांड अंबेस्डर भी उनका आलाप लगाते पर यहाँ के तो जानवर पत्थर की मुर्तियोंं कन्वर्ट हो गये हैं और उनको कोई परेशान भी नही करता। पिछले चुनाव मे आयोग ने सबको ढंकवा दिया था तो इसबार सब " गाय, बैल ,गदहा, गैंडा" का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं।तो लो भैया! राजनीति का " गदहा कांड" तो हाईप्रोफाइल  सेक्स स्कैंडलो से भी ज्यादा हिट हो गया है। अपील के बाद गदहों को लगने लगा है कि वाकई मे वे इतने पापूलर है तो अब बच्चन भाई साहब  की जरूरत नही रही।मंचो और मीडिया से अपना नाम गायब होते देख उधर " काऊ" काऊ प्यारी काऊ रूदाली गाने के मुड मे है!" दिल हूम हूम करे घबराये!और " मोहे भूल गये सांवरिया!" जैसे सैड सांग गा रही है पर पत्थर दिल पिघल ही नही रहा है।वाकई  कितने अहसान फरामोश हैं ये लोग। अभी पिछले सालतक तो मुझे और मेरे मांस तक पर बबाल मचा देते हैं और अब गदहे पर आ गये हैं। वाकई इन मानुषों का कोई स्टैण्डर्ड कैरेक्टर नही है।" हम छोड़ चले हैं महफिल को ,याद आये कभी तो मत रोना।"गाय माता रुठी तो गदहों ने हड़ताल की नोटिस दे दिया कि बहुत हुआ ,अब और बर्दाश्त नही। अब तक ये लोग तो आपस मे एक दूसरे को" गदहा" कह के बुलाते थे। अरे! हमारा भी कोई स्टैण्डर्ड है"! हर कोई ऐरा गैरा मेरे नाम का युज कर ले अच्छी बात नही है। हमें इसका हर्जाना चाहिए।  ये अलग बात है कि हम लोग आपस मे जब गरियाते हैं तो कहते हैं" सफा आदमिये हो गये का? लेकिन हमारा भी कोई स्टैण्डर्ड है। वैसे जबसे" गाय" सांप्रदायिक हो गई है, तो गदहों का क्रेज बढ गया है।प्रचलित "गदहा विमर्श" वैसे ही नही पापूलर हुआ है बल्कि " गदहा सम्मान रक्षा आंदोलन " ने इसकी भूमिका रच दी थी। सामाजिक जानवरों( मैन इज अ सोशल एनिमल) ने आपस मे एक दूसरे को गदहे के नाम से बुलाना शुरू किया तो उनकी प्रतिष्ठा मे हानि होती है। "इतने मेहनती और एक लक्षी पशु का यह अपमान, अब नही सहेगा हिन्दूस्तान!" नारों से गलियों मे तहलका मच गया।इस आंदोलन का शुरू मे कुत्ते भी सपोर्ट करने लगे थे पर उनमें वफादारी ज्यादा होती हैऔर वो इसे आसानी से छोड़ना नही चाहते थे इसलिए ज्यादा वोकल आंदोलन नही चला पाये। गैंडो" को तो पता ही नी चल पाया कि कौन गैंडा!" पशुचारा आहारी के मुख से किसी के लिए गैंडा निकलने पर उन्हें लगा कोई हमनाम हमसफर कहीं भटक रहा होगा वापस आ जायेगा।तो " गदहा सम्मान रक्षा आंदोलन" के बैनर तले गदहों और गदहा सदृश सोशल  एनिमलो ने अपना एक ज्ञापन तैयार किया और मंत्री जी से मिलने चले आये। उनकी मुख्य मांगे थी :--
1  आपस मे मनुष्य उनके नाम का उपयोग न करे क्योंकि इससे उनका अपमान होता है
2  यदि उपयोग करते हैं तो उनपर जुर्माना लगाया जाय और जुर्माने की धनराशि " गदहा वेलफेयर एसोसिएशन " मे जमा करवाया जाये।
3  गदहों के काम के घंटे निश्चित किये जाये और साप्ताहिक छुट्टी भी दी जाय!धोबियों द्वारा ज्यादा काम लेने पर उनके विरुद्ध " लेबर एक्ट" के अधीन कारवाई की जाय।( ये क्लाज खासकर के " ले के रहेंगे आजादी" गुट के दबाब मे डाला गया)
4  राजनीतिक मंचो से गदहों के नाम लेने पर बैन लगाई जाये क्योंकि इससे भविष्य मे " गाय" की तरह सांप्रदायिक हो जाने का खतरा है।चुनाव आयोग इस पर स्पेशल अटेंशन दें।
5  गदहों पर बनाये गये जोक्स और हंसी मजाक को बैन किया जाये। यदि सिख समुदाय इसका विरोध कर सकते हैं तो वो क्यों नही?" संता बंता" डोन्ट माइंड, वी आर विद यू डियर"!
6 गदहों की मुर्खताओं को प्रदर्शित करने वाली कहानियों को पाठ्य पुस्तकों से हटाया जाय क्योंकि इससे उनकी जेनरेशन बिगड़ने का खतरा है।
7  गदहों को भी चुनाव मे वोटिंग का अधिकार मिले क्योंकि" कैसे कैसों को दिया है, इसको उसको सबको दिया है। हमको भी तो राइट दिलवा दो, हमको भी तो लिफ्ट करा दो।"
        इन सात सूत्री मांगपत्र को देने जब वे मंत्री जी के दरबार मे हाजिर हुए तो मंत्री जी उवाच" भाईयों ! आपकी सभी समस्या का समाधान हमारे पास है, बस हमे आप वोट दीजिए, हम आपको वादे देते हैं। अध्यक्ष बोले" लेकिन हम तो वोटिंग का अधिकार ही मांगने आये हैं। मंत्री जी" तब तो हम आपके लिए कुछ भी नही कर सकते , वादे भी नही, क्योंकि ये भी हम " ओनली फार वोटर" स्कीम है।और आपको क्या जरूरत है इस सब की। अरे! बिन मांगे पब्लिसिटी मिल रही है।खाओ पिओ मस्त रहो!" खो मंगला पड़ल रह!" सरकार करोड़ो रुपये खर्च कर " एड कैंपेन" करा रही थी। उसकी जरूरत नहीं। फिर भी देखता हूं , क्या कर पाता हूं।आपलोग काम पर लग जाईये! चुनावी मौसम मे युं ही सब बहक जाते हैं। होली के बाद कोई पूछेगा नही आपको! उस दिन तो सिर्फ बकरे कटेंगे। आप मौज करो। गदहे वापस खुशी मनाते आये कि मंत्री जी जरूर कुछ करेंगे। और यह क्या कम है कि उनका हाल गाय और बकरों जैसी नही है। "

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