पर्यटन स्थलों में बदलते तीर्थ स्थल

 वर्ष 2025 के पहले दिन अर्थात पहली जनवरी को अनुमानतः अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में 5 लाख से अधिक लोगों ने दर्शन किए। इसी दिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ मन्दिर में 7 लाख, उज्जैन के महाकाल मन्दिर में 6 लाख, आंध्र प्रदेश के श्री तिरुपति मंदिर में 4 लाख, ओडिशा के श्री जगन्नाथपुरी मंदिर में 5 लाख और हरिद्वार में गंगा नदी के घाटों पर लगभग 3 लाख लोगों का आगमन हुआ। जाहिर है कि यह आंकड़े धर्म स्थलों पर निरंतर बढ़ती भीड़ की ओर इशारा करते हैं। दूसरी ओर  इस वर्ष न्यू ईयर को मनाने के लिए गोवा पहुंचनेवाले पर्यटकों की संख्या में कमी आई है। यह भारत में पर्यटन के बदलते ट्रेंड की ओर इशारा करते हैं। धार्मिक  स्थलों या तीर्थों के ओर बढ़ते संख्या में दर्शनार्थी सिर्फ श्रद्धालु नहीं है, बल्कि इनमें वो भी हैं ,जो इसी बहाने घूमने फिरने के लिए अपने घरों से निकल रहे हैं। यह धार्मिक पर्यटन या आध्यात्मिक पर्यटन का हिस्सा है। यह तीर्थ/धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थलों के रूप में परिवर्तित कर रहा है।

     वस्तुत: धार्मिक पर्यटन में लोग धार्मिक या आध्यात्मिक उद्देश्यों से यात्रा करते हैं। इसे आस्था पर्यटन, तीर्थ पर्यटन  या आध्यात्मिक पर्यटन भी कहा जाता है। एक आंकड़े के अनुसार भारत में पर्यटन का 60 प्रतिशत हिस्सा आस्था/आध्यात्मिक /धर्म आधारित यात्राओं से आता है। वर्ष 2014-15 में 2.26 करोड़ देशी पर्यटक घूमने निकले थे। यह आंकड़ा  दस वर्षों में बढ़कर  251 करोड़ हो गया। वर्ष 2014 में भारत में 3.90 लाख विदेशी पर्यटक आए थे , जो अगले  दस सालों  में अर्थात वर्ष 2023 में बढ़कर 189 लाख हो गया  है। पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, धार्मिक पर्यटन स्थलों से वर्ष 2022 में 1,34,543 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जो 2021 में मात्र 65,070 करोड़ रुपये थी। एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2024 में लगभग 70 प्रतिशत भारतीय यात्री आध्यात्मिक/धार्मिक यात्रा पर निकले हैं। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक  भारत के आध्यात्मिक पर्यटन द्वारा संचालित अस्थायी और स्थायी नौकरियों के माध्यम से सौ मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार मिल जाएगा, जिसका मूल्य लगभग 59 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है। देश में  धार्मिक पर्यटन में किस गति से वृद्धि हुई है,  इसका अनुमान इस तथ्य से  भी लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम के जीर्णोद्धार और कारिडोर  निर्माण के बाद लगभग 7 करोड़ लोगों ने दर्शन किये, जबकि एक वर्ष पहले यह संख्या मात्र 80 लाख  थी। 


 जाहिर है कि देश में कोविड कालीन लाकडाऊन, मृत्यु भय, अकेलापन ने लोगों को बड़ी मात्रा में घर से बाहर निकलने और तीर्थ स्थलों को ओर जाने को प्रेरित किया है। जीवन की क्षणभंगुरता के अहसास  ने लोगों को अल्प समय में देशाटन, पर्यटन, खर्च करने को प्रेरित किया है। उपर से भाजपा सरकार द्वारा धार्मिक तीर्थ स्थलों के प्रमोशन, सुधार, विज्ञापन, सनातन धर्म के प्रति आस्था को बढ़ाने में भी योगदान दिया है। भारत में आदिकाल से धार्मिक  तीर्थाटन प्रवृत्ति रही है। इसी प्रवृत्ति को ध्यान रखते हुए पर्यटन में धार्मिक पर्यटन की बढ़ती हिस्सेदारी को बढ़ाने  के लिए वर्ष  2014-15 में 'तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान' अर्थात “प्रसाद” योजना प्रारंभ की गई, जिसके  अंतर्गत  देश के 25 राज्यों के 41 धार्मिक स्थलों को चिन्हित  कर उसके विकास की योजना बनाई गई। पिछले दस वर्षों में इनमे से काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, केदारनाथ और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ,जगन्नाथपुरी इत्यादि सहित अन्य कई तीर्थस्थलों पर कारिडोर निर्माण, मंदिर जीर्णोद्धार और अन्य आधारभूत संरचनाओं की व्यवस्थाओं को पूर्ण किया गया। इसका उद्देश्य संपूर्ण धार्मिक पर्यटन अनुभव प्रदान करने के लिए तीर्थ स्थलों को प्राथमिकता, योजनाबद्ध और टिकाऊ तरीके से एकीकृत करना है। धर्मस्थल दर्शन के साथ साथ यहां पर्यटकों के लिए अनूठे स्थानीय अनुभवों जैसे वैष्णो देवी में व्हाइट-वॉटर राफ्टिंग और नाइट ट्रैकिंग, ऋषिकेश में बंजी जंपिंग, गंगा में नौकायन , पुरी में  विरासत शिल्प गांव का दौरा करना या केरल में कलयारीपयट्टू जैसी स्थानीय कला सीखना इत्यादि गैर धार्मिक और मनोरंजन के साधनों को विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। वस्तुत पर्यटन से मिलने वाली आय और व्यवसाय के चलते  सरकारें भी इसे प्रमोट कर रही है, वहां यात्री सुविधाये बढ़ा रही है। परिवहन, हवाई यात्रा कनेक्शन, बिजली, पानी, होटल, सेल्फी प्वाइंट व अन्य  सुविधाएं यात्रियों को आकर्षित कर रही है। इन सबने सम्मिलित रुप से पर्यटकों को इन जगहों पर आकर्षित किया है। 


         इन धार्मिक स्थलों को लोकप्रिय बनाने और इनमें भीड़ बढ़ाने के लिए भारत में जेनरेशन जेड का महत्वपूर्ण योगदान है। यह वर्ग, जो वर्ष 1997- 2012 के बीच जन्मे हैं और इंटरनेट के साथ पैदा हुए है , पूर्णरूपेण सोशल मीडिया पर जी रहे हैं। इन्हें जूमर्स या डिजिटल नेटिव भी कहते हैं। इनके अधिकांश सदस्य नाइट क्लबों की अपेक्षा मंदिरों को अधिक पसंद करते हैं क्योंकि इन्हें धार्मिक स्थलों की यात्रा से न सिर्फ मानसिक शांति मिलती है बल्कि ऊर्जा का एक स्रोत मिलता है। बढ़ते कंपटीशन  के युग में जी तोड़ मेहनत के साथ साथ ईश्वर में आस्था बढ़ी है। इसके  साथ सबकुछ पहले करने और उसे दिखाने की बढ़ती प्रवृत्ति में ये उन जगहों पर भी पहुंचकर सोशल मीडिया कंटेंट बना रहे हैं, जिन्हें कुछ साल पहले तक दूर और दुर्गम माना जाता था। ये तीर्थ स्थल  ज्यादातर दुर्गम जगहों और पहाड़ों में स्थित हैं जो इन्हे आकर्षित करते हैं। जब ऐसे पोस्ट  यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की जाती है, तो लोगों, खासकर युवाओं में स्वयं के द्वारा वहां जाने, देखने , स्वयं पोस्ट करने की उत्सुकता पैदा होती है। कुछ  नया करने की प्रवृत्ति में पिछले दो वर्षों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आध्यात्मिक स्थलों की खोज में 97 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।इसने पिछले एक दशक में यात्रा और पर्यटन उद्योग में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्तमान में यात्रा करने वाले लगभग 43 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर सर्च किये बिना यात्रा प्लान नहीं करते हैं। सोशल मीडिया है हैशटैग  में यात्रा को टिकटाक पर 74.4 बिलियन से अधिक बार देखा गया है, जबकि इंस्टाग्राम पर “यात्रा “से संबंधित 624 मिलियन से अधिक पोस्ट उपलब्ध है। हजारों ट्रैवल इन्फ्लुएंसर,यू ट्यूबर, ट्रैवल ग्रुप, पेज और लाखों ट्रैवल पोस्ट उपलब्ध होने के कारण इंटरनेट पर पर्यटन संबंधी महत्वपूर्ण आंकड़ा उपलब्ध है जिसमें महत्वपूर्ण  और नये नये धार्मिक स्थलों की संख्या बढ़ी है। लगभग  35 प्रतिशत पर्यटक अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देखी गई पोस्ट के आधार पर ही छुट्टी मनाने के लिए अपने गंतव्य स्थलों  का चयन करते है। एक सर्वेक्षण  के अनुसार 40 वर्ष से कम आयु के लगभग 50 प्रतिशत सोशल मीडिया पोस्ट  से प्रभावित होकर छुट्टी या यात्रा प्लान करते हैं। हाल के दिनों में रील, शॉर्ट्स और व्लॉग इत्यादि ने गंतव्यों का पता लगाने और अपनी आगामी यात्राओं की योजना बनाने के लिए मूल्यवान जानकारी एकत्र करने के लिए उपभोक्ताओं के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता प्राप्त की है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स , व्हाट्स एप और टिकटाक जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अरबों सक्रिय उपयोगकर्ताओं के साथ पर्यटन उद्योग तेजी से विस्तारित हो रहा है। इन सबसे प्रभावित होकर नव विवाहित जोड़ों या हनीमूनर्स, दोस्तों के समूह, मिलेनियल्स और जेनरेशन जेड भी धार्मिक पर्यटन यात्राओं पर जा रहें हैं। एक समय था जब  मां-बाप बच्चों को बाहर घुमाने की बात करते तो उन्हें लेकर धार्मिक स्थलो में ही जाने की कोशिश करते और बच्चे इससे चिढ़ भी जाते थे, परंतु अब स्थिति बदल रही है,युवाओं की भीड़ तीर्थ स्थलों में ही बढ़ रही है। 

             आध्यात्मिक पर्यटन में लोग अपने आध्यात्मिक अनुभवों या अपने धार्मिक विश्वासों से प्रेरित होते हैं, या आंतरिक शांति और ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। परंतु यह विचारणीय विषय है कि  क्या अब परंपरागत तीर्थाटन, मंदिरों के दर्शनों के लिए  जानेवालों में श्रद्धाभाव या धार्मिक  शुचिता का भाव रह गया है। वस्तुत अब  इन धार्मिक पर्यटनों में पारिवारिक दायित्वों से मुक्त प्रौढ़ या वृद्ध लोगों का जमावड़ा नहीं बल्कि नव विवाहित जोड़ों या हनीमूनर्स, दोस्तों के समूह, मिलेनियल्स और जेनरेशन जेड के युवाओं की भीड़ है, जो यहां श्रद्धा भाव से कम बल्कि घूमने फिरने के लिए जा रहे हैं। इनकी प्राथमिकता सबसे पहले फोटो, वीडियो या रील्स बनाना रहता है, स्टेटस अपडेट करना रहता है। । भगवतदर्शन, आरती, भजन, श्रृंगार के समय भी हाथों के मोबाइल की रिकॉर्डिंग पर ज्यादा ध्यान रहता है। इसमें कुछ लोग हद पार कर जाते हैं और फैशन में बेतरतीब फोटो वीडियो बनाते हैं, हनीमूनर्स की तस्वीरें आपत्तिजनक होती है। केदारनाथ में पिछले दिनों एक आदमी अपने कुत्ते के साथ पहुंच गया था। एक जोड़े ने मंदिर के सामने अपनी होनेवाली प्रेमिका को प्रपोज करने का वीडियो डाला, इसपर काफी विवाद हुआ।इन रील्स , वीडियो के पीछे यूट्यूबर, इंफ्लूएंसर की वीडियो , लाइक्स, शेयर , व्यू पर होनेवाली कमाई, सबसे पहले पहुंचने और अपने को अलग दिखने की कोशिश होती है। इसका सबसे बड़ा असर यह पड़ा है कि लोग इससे प्रभावित होकर इन स्थानों पर भीड़ लगा देते हैं। लोग यह समझते नहीं कि यह तीर्थ स्थल हैं, पर्यटन स्थल नहीं। बढ़ती भीड़ का ही दुष्प्रभाव  है कि इन धर्म स्थलों में भी वीआइपी कल्चर और पैसा देकर सुविधा दर्शन करने का चलन बढ़ रहा है। 

      धार्मिक संस्थाओं और संगठनों द्वारा तीर्थ स्थलों को इस तरह से पर्यटन स्थलों के रुप में हो रहे परिवर्तन को लेकर विरोध हो रहा है। अभी हाल में झारखंड सरकार द्वारा जैनियों के पवित्र धर्म स्थल पारसनाथ पहाड़ी स्थित सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने का जबरदस्त विरोध किया गया। सरकार के इस फैसले के विरोध में राजस्थान के सांगानेर में अनशन करते हुए जैन मुनि सुज्ञेयसागर जी ने देह त्याग दिया। जैनियों के अनुसार सम्मेद शिखर आस्था का क्षेत्र है और यदि इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित किया जाता है तो लोग यहां आकर खाना-पीना, शराब पीना, डांस करना आदि वर्जित चीजों का उपयोग करेंगें, जिससे इस तीर्थ स्थल की पवित्रता भंग होगी। वस्तुत : दुनियाभर में जहां कहीं भी तीर्थस्थल हैं, वहां पर धार्मिक शुचिता और बेहतर आचरण के पालन पर जोर दिया जाता है। तिरुपति बालाजी, श्री सम्मेद शिखरजी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, मक्का, वेटिकन सिटी, चारधाम  यात्रा, केरल सहित दक्षिण भारतीय मंदिरों में निर्धारित अनुशासन का पालन करना ही होता है और यह आवश्यक भी है। वस्तुत सिर्फ पर्यटनों से होनेवाली आय , बाजारीकरण की प्रवृति को ध्यान में रखते हुए आस्था के इन तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थलों में परिणत होते देखना सही नहीं है। 

 

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