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Showing posts from December, 2024

बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन

इस साल गर्मियों के मौसम में बुंदेलखंड में बांदा का तापमान 49 डिग्री  सेल्सियस पहुंच गया था। पिछले 35 सालों में यह तीसरी बार है , जब बांदा में तापमान 49 डिग्री पहुंच गया।  पहली बार वर्ष 1981 में और इसके बाद 16 मई 2022 को यहां का तापमान 49 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया था। उस समय बांदा, प्रदेश का  सर्वाधिक गर्म और देश में सर्वाधिक तापमान वाला तीसरा शहर था। जाहिर है कि बुंदेलखंड में गर्मियों के मौसम में तापमान बड़ी तेजी से बढ़ने लगा है। वर्षा के मामले में बुंदेलखंड हमेशा से कमी वाला क्षेत्र रहा है। यहां लगभग 1 हजार मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जिसमें से लगभग 90% जुलाई और अगस्त के छोटी सी अवधि में होती है। सर्दियों के संबंध में बुंदेलखंड में एक कहावत है कि  “दशहरा से दसरैंया भर, दिवाली से दिया भर, ग्यारस से फांक भर और संक्रांति से गाड़ी भर ठंड आती हैं।” लेकिन अब इस प्रकार की सर्दी का मौसम यहां  नहीं रहता है।एक ओर इसकी अवधि घट गई है, लेकिन दूसरी  तरफ तीव्रता बढ़ गई है। पिछले साल सर्दियों  में चित्रकूट मंडल में तापमान 4 डिग्री तक नीचे गिर गया था। जाहिर है ...

संकट में है जंगली जीव

हाल के वर्षों में जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों में आने तथा इंसानों पर आक्रमण करने की घटनाएं  बड़ी तेजी से बढ़ी है। ऐसी घटनाएं ज्यादातर तराई इलाके एवं जंगलों के किनारे वाले इलाके में होती, क्योंकि जंगली जानवरों का  इंसानी बस्तियों में पहुंचना आसान होता है। इसी वर्ष सितंबर  में बरेली के बहेड़ी स्थित मंसूरगंज गांव में नदी के पास भेड़ियों ने हमला कर तीन लोगों को जख्मी कर दिया। उससे पहले मैनपुरी के जरामई गांव मे भेड़िए ने हमला कर एक युवक  को तथा बहराइच में एक युवती को गंभीर रूप से घायल कर दिया।  पीलीभीत में बाघ ने खेत में काम  कर रहे किसान पर हमला कर दिया। मेरठ में चलती बाइक पर तेंदुए ने हमला कर दिया। अमरोहा के मंडी के कुंआखेड़ा गांव में तेंदुए ने बकरियों को अपना निवाला बना लिया। वस्तुत यह सब घटनाएं जानवरों के जंगलों से बाहर निकलकर इंसानी बस्तियों में प्रवेश कर जाने के उदाहरण है। स्वाभाविक रूप से इससे  मानव वन्य जीव संघर्ष की संभावनाएं  बढ़ जाती है।             वस्तुत मानव-वन्यजीव संघर्ष तब...

जी एम फसलों का औचित्य

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जीएम फसलों के संबंध में अपने एक निर्णय में सरकार को इस संबंध में नीति बनाने का निर्देश देते हुए जेनेटिकली मोडिफाइड (जी एम) फसलों की स्वीकृति संबंधी वाद को माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली मुख्यपीठ को भेज दिया है। जीएम फसलें शुरू से ही विवाद का विषय रही हैं। इसे मूल तौर पर प्रकृति  के साथ छेड़छाड़ और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सिद्धांतों के विपरीत माना जाता रहा है। जीएम फ़सल अर्थात आनुवंशिक रूप से संशोधित/संवर्धित फ़सलें। इनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग की तकनीकों से बदल दिया जाता है। इस तकनीक द्वारा किसी बीज, जीव या पौधे के जीन को दूसरे बीज या पौधे में आरोपित कर एक नई प्रजाति विकसित की जाती है। इस प्रक्रिया में किसी बीज में नए जीन अर्थात डीएनए  को डालकर उसमें आवश्यकतानुसार गुणों का समावेश किया जाता है, जो उसके प्राकृतिक गुणों के अतिरिक्त होते हैं, जैसे आलू के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या सुअर के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या मछली के जीन का प्रवेश सोयाबीन में करवाना इत्यादि ।         ...