रामसेतु -मानव निर्मित या प्राकृतिक

अंतरिक्ष में उपग्रहों से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि, तमिलनाडु से जाफना (श्रीलंका) तक एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है,जिसे  "रामसेतु"  के नाम से जाना जाता है। हिंदू पुराणो के अनुसार इस सेतु का निर्माण अयोध्या के राजा श्रीराम की सेना के दो वानर सैनिक नल-नील ने किया था। अरब यात्री अलबरुनी ने भी अपने वृतांत में  इसका जिक्र किया है। कहा जाता है कि 15 वीं शताब्दी तक इसे पैदल पार किया जाता था। मन्दिरों के अभिलेखों के अनुसार रामसेतु पूरी तरह से सागर के जल से ऊपर स्थित था, इसे 1480  ई० में एक चक्रवात ने इसे तोड़ दिया। हाल में आयी अभिषेक शर्मा और अक्षय कुमार की फिल्म "रामसेतु " इसी की ऐतिहासिकता प्रमाणित करने की कोशिश है। 

         वर्ष 2017 में अमेरिकी संस्था नासा के साइंस चैनल पर "राम सेतु या एडम्स ब्रिज" पर "व्हाट ‘ऑन अर्थ एनसिएंट लैंड एंड ब्रिज"नामक एक डाक्यूमेंट्री’दिखलाई गई थी,जिसमें भू-वैज्ञानिकों ने इस ढांचे के बारे में गहन विश्लेषण किया गया है। भू-वैज्ञानिक एरिन अर्गेईलियान ने कहा है कि तस्वीर में दिख रहा पत्थर बालू पर है, जो आसपास से पानी के साथ बहकर आया है। जबकि, डॉक्टर एलन लेस्टर का ऐसा मानना है कि यहां पर बालू पहले से मौजूद था, जबकि उसके ऊपर पत्थर बाद में लाकर रखा गया है। इनका निष्कर्ष है कि  जिस सैंड पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है। यहां पर लाया गए पत्थर करीब 7 हजार साल पुराना है।जिस सैंड के ऊपर यह पत्थर रखा गया है वह सिर्फ चार हजार साल पुराना है। भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम तट के मन्नार द्वीप के बीच 48 किलोमीटर की लंबी संरचना जो समुद्र में पानी के अंदर है, वह काफी पुरानी है। 


        वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राम ने सीता को लंका के राजा रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था,जिसमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठा लिया ।डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्री राम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद राम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और रावण की लंका में गये।इस्लामिक कथाओं के अनुसार एडम यानी आदम ने इस पुल का इस्तेमाल आदम की चोटी एडम्स पीक यानि त्रिकूट पर्वत (श्रीलंका) से भारत पहुंचने के लिए किया था। वैज्ञानिकों के अनुसार राम सेतु एक प्राकृतिक संरचना है जबकि आस्थावानों के लिए यह भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित है। इसी क्रम में वर्ष 2005 में भारत सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना का ऐलान किया था जिसमें  राम सेतु को तोड़कर नया समुद्री मार्ग बनाने की योजना बनाई गई थी। इससे भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री दूरी  400 समुद्री मील कम हो जाती और समय और ईंधन दोनों की बचत होती परंतु परियोजना के  व्यापक जनविरोध और बाद सुप्रीम कोर्ट में स्टे कर दिये जाने से स्थगित हो गया। फिल्म इसी कहानी को लेकर आगे बढ़ती है।

             फिल्म की शुरुआत तो अफगानिस्तान में पुरातात्त्विक उत्खनन और बामियान बुद्ध मूर्ति से होती है जिसमें बहुमूल्य खोज करने के कारण पुरातत्ववेत्ता आर्यन कुलश्रेष्ठ को  भारत सरकार मे पुरातत्व विभाग में उच्च पद दिया जाता है। यहां उसे सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट लगानी होती है कि रामसेतु मानव निर्मित नहीं बल्कि प्राकृतिक है और भावावेश वो रामायण को इतिहास मानने पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। इसका सब ओर विरोध शुरू होता है और सरकार उसे बलि का बकरा बनाकर सस्पेंड कर देती है। पुष्पक शिपिंग कंपनी का मालिक शिपिंग नहर परियोजना के उद्देश्य से गहरे पानी के चैनल का निर्माण करना चाहता है। वह इसे भारत और श्रीलंका के बीच एक शिपिंग मार्ग बनाना चाहता है, ताकि भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच सफर का समय भी कम हो जाएगा।  सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट की रिसर्च टीम  पुरातात्विक तथ्यों के आधार पर  साबित करना चाहती है कि राम सेतु एक  प्राकृतिक संरचना है और ये भगवान राम के जन्म यानि सात हजार साल से भी पहले से प्रकृति निर्मित है। आर्यन को इसी टीम का हेड बनाकर भेजा जाता है। आर्यन को सेंड्रा रीबेलो, परवेश राणा, जेनिफर जैसे लोगों टीम के साथ रिसर्च के लिए भेजा जाता है। आर्यन मानता है कि वो पुल भगवान राम द्वारा निर्मित नहीं है परंतु अपने रिसर्च के क्रम में प्राप्त तथ्यों से उसे लगने लगता है कि वह ग़लत था। आर्यन समेत उसकी पूरी टीम को मारने का षड्यंत्र रचाया जाता है।  आर्यन और टीम को अंजनी पुत्र ( एपी) नामक गाइड बचाता है और वह प्रेरित करता है आगे की रिसर्च रावण की लंका में करें।  उधर राम सेतु पर शिपिंग परियोजना पर अदालत को फैसला देने में महज दो दिन बाकी हैं। अंततः आर्यन अपने शोध से कोर्ट को कंविंस कर लेता है।

              पौराणिक कथाओं को आधुनिक सोच के साथ मिलाकर रहस्य और रोमांच वाली फिल्में बनाने की विदेश में लंबी परंपरा रही है। फिल्म इस राम सेतु के अस्तित्व को स्थापित करती है और ये भी स्थापित करती है कि मान्यताओं में चली आ रही कहानियां सिर्फ कल्पनाएं नहीं हैं।  लेकिन बड़ा अजीब है कि राम सेतु के लिए आर्यन और उसके दो-तीन साथी महज तीन दिन में सारे सबूत जुटा लेते हैं।वह आसानी से उसे सारी बातें पता चलती है, गूढ़ संकेतों और भाषाओं के वो अर्थ समझता है, सुरंग में घुस जाता है, पहाड़ों की खाक छान लेता है। हालांकि निर्देशक ने यहां सत्यदेव यानि अंजनि पुत्र (एपी) रुपी हनुमान का सहारा लिया है जो गाइड के रूप में आर्यन और उसकी टीम को राह दिखा रहा होता  है। कैसे सरकार और व्यापारी, देश की प्रगति के नाम पर देश की धरोहर और सांस्कृतिक विरासतों का मजाक बनाती है। समुद्र के अंदर के सारे दृश्य ध्यान खींचते हैं जिन्हें आप एकटक होकर देखते रहते अक्षय कुमार रहस्यों का पता लगाते हैं उस समय उन्हें पांडुलिपि मिलती है, जिसमें रावण का पैलेस, अशोक वाटिका, मायासुर इन सबके बारे में पता चलता है। फिल्म में बेहतरीन छायांकन भी किया गया है। इसके अलावा कुछ जगहों पर रूपक का अच्छा प्रयोग है।फिल्म में उन जगह का भी जिक्र है जहां रावण ने सीता मां को कैद किया जहां रावण ने वीणा बजाई। फिल्म रामसेतु को और श्री राम को एक तरह से इतिहास का हिस्सा मानती है। अपनी रिसर्च के अंतिम पड़ाव में श्रीलंका की एक जगह में एक टनल तक अक्षय कुमार अपने साथियों के साथ बड़ी मुश्किल से पहुंचते हैं और श्रीलंका की टनल में जो हेला लिपी लिखी मिलती है, जो एक साक्ष्य हैं। एडम्स पीक पर पाये जानेवाले संजीवनी बूटी सदृश पौधे की जानकारी महत्वपूर्ण है।फिल्म के वन लाइनर कमाल के हैं, जो कैची भी हैं।

1.जो देश श्रीराम के विश्वास से चलता है उस विश्वास को चुनौती कैसे दोगे।

2. तुम्हारा काम है गड़े मुर्दे उखाड़ना, लोगों की आस्था का मजाक बनाना नहीं।

3. इस देश में जो श्रीराम को नहीं मानता उसका मुंह काला होना ही है।

4. श्रीराम सिर्फ व्यक्ति नहीं भारत की संस्कृति हैं।

5. अंग्रेज़ों द्वारा भारत के इतिहास को युरोपसेन्ट्रिक बनाने की साजिश है।

6. श्री राम सिर्फ कल्पना हैं ,ये बताने की जिम्मेदारी श्रीराम को मानने वालों की नहीं, श्रीराम को न मानने वालों की है।

7. बामियान की मुर्तियां सिर्फ इसलिए तोड़ी गई कि यह भारत अफगानिस्तान के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों को छोड़ सके।


       पौराणिक मान्यताओं और तथ्यों पर बुनी गई इस आधुनिक कहानी में विज्ञान बनाम आस्था की जंग दिखाई गई है। इसके पत्थर आज भी पानी में तैरते हैं। फिल्म में रहस्य, रोमांच, एक्शन और एडवेंचर के सभी तत्व विद्यमान हैं। स्पेशल विजुअल इफेक्ट्स का भी खूब इस्तेमाल किया गया है, लेकिन उतना इफेक्टिव नहीं है। समुद्र के अंदर के दृश्य और फोटोग्राफी बेहतरीन है। श्रीलंका के लोकेशंस कमाल के हैं, लेकिन एडिटिंग सफाई से नहीं की गई है।  अक्षय कुमार का लुक, बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलिवरी, सबकुछ अलग है। इसके अतिरिक्त  साउथ के कलाकार सत्य देव और बिग बॉस फेम प्रवेश राणा ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। महिला कलाकारों के किरदारों के साथ न्याय नहीं किया गया है। जैकलीन फर्नांडीज और नुसरत भरूचा बस चेहरा भर हैं। सत्यदेव ने एपी के रुप में बेहतरीन किरदार निभाया है। फिल्म का ट्विस्ट और टर्निंग प्वाइंट वहीं लेकर आता है। कहानी थोड़ी कसी हुई नहीं है। मसलन जाफना में विद्रोही क्यों इस टीम का हेल्प करती है? क्यों अंततः कोर्ट का फैसला तथ्यों पर न होकर आस्था पर ही होता है ? अफगानिस्तान के बामियान का किस्सा दिखाने की आवश्यकता क्या थी? कोर्ट रुम बहस फिल्म "ओ माई गाड" की तरह जानदार नहीं थी बल्कि डाक्यूमेंट्री टाइप थी।

       वस्तुत: अयोध्या में रामजन्म भूमि की तरह राम से जुड़ी हरेक बातें और स्थान भारतीय जनमानस और आस्था से गहरे तौर पर जुड़ी हुई है। राम और उनके लंका विजय के प्रतीक रामसेतु के बारे यदि हिंदू ग्रंथों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन, इस्लामी और ईसाई ग्रंथों में यदि जिक्र है तो वह ऐसे ही नहीं होगा। आज विश्व के अनेक देशों में राम को मानने वाले मौजुद है तो ऐसे सिर्फ विकास के नाम पर ऐसे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को क्षति पहुंचाने का कुत्सित प्रयास ग़लत है। रही बात फिल्म की तो यह बस उसके बारे में आमजन में अपनी बात पहुंचाने का निर्देशक और लेखक का एक प्रयास मात्र है।आस्थाओं को खंडित करने के लिए ठोस  वैज्ञानिक और पुरातात्त्विक प्रमाणोंकी आवश्यकता है और यह भी कि  इसको प्रमाणित करना उनका काम है जो यह मानते हैं कि राम अनैतिहासिक व्यक्ति थे।



     

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