पोन्नियन सेल्वन


तमिल लेखक कल्कि कृष्णमूर्ति ने लगभग 2400 पेजों में दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध और महान राजवंश चोल वंश की कहानी महागाथा के रूप में लिखी है " पोन्नियन सेल्वियन" अर्थात पोन्नी (कावेरी) का बेटा। यह पांच भागों में प्रकाशित हुई। पोन्नियन सेल्वियन ,जिसका मूल नाम अरुलमोझी वर्मन था, सबसे शक्तिशाली , महान और प्रसिद्ध राजा हुआ। उसने अपना नाम रखा" राज राजा प्रथम और उसे अनेक उपाधियों से विभूषित किया गया जैसे चोल मार्तंड, शशिपादशेखर, राज मार्तंड, राज आश्रय इत्यादि। हिंद महासागर में उसके नौ सेना की तूती बोलती थी, उसने श्रीलंका, मालदीव, केरल के राजा रवि वर्मा ,पांड्य, कलिंग को पराजित कर विशाल साम्राज्य स्थापित किया। नृत्य करते हुए नटराज की प्रतिमा,कांचीपुरम की मशहूर सिल्क साड़ियां, कांचीपुरम का मंदिर , एलोरा का कैलाश मंदिर तथा तंजौर का भव्य और अद्भुत बृहदेश्वर मंदिर जिसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, चोल साम्राज्य की देन है। 

   वस्तुत चोल साम्राज्य के बारे में इतना इंट्रोडक्शन देने की जरूरत इसलिए है कि यदि आप इतिहास के अध्येता नहीं है तो आप मणिरत्नम की मल्टीस्टारर फिल्म " पोन्नियन सेल्वियन" से कनेक्ट नहीं कर पायेंगे। हिंदी भाषियों को फिल्म की कहानी रुचिकर नहीं लगेगी। फिल्म सुंदर चोल या परातंक प्रथम के परिवार और राजशाही से शुरू होती है, जिसमें बड़ा बेटा आदित्य करिकलन राष्ट्रकूटों से लड़ रहा है और छोटा बेटा अरुलमोझीवर्मन श्रीलंका में विशाल नौसेना के साथ घुस चुका है। इधर उसके मंत्री गण पर्वतेश्वर चोल एवं उनकी नवयुवती पत्नी नंदिनी के षड्यंत्रों में उलझकर तंजौर की राजसत्ता हथियाना चाहते हैं। सुंदर चोल की बेटी कुंदवई ,इन षड्यंत्रों पर नजर रखकर अपनी चाल चल रही है। आदित्य अपने सहयोगी वंदीतेवन को इस सबसे बचाव करने और सब पर नजर रखने भेजता है। अंत में वंदीतेवन सिंहल द्वीप तक जाकर अरुलमोझी वर्मन के साथ षड्यंत्रकारियों से लड़ता है। फिल्म की जान इसका क्लाइमेक्स है जिसको " टाइटेनिक" फिल्म की तरह फिल्माया गया है, हालांकि यह वह प्रभाव नहीं छोड़ पाता है लेकिन अगले भाग के लिए जिज्ञासा तो बढ़ा ही देता है। फिल्म की जान तो वंदीतेवन यानि एक्टर कार्थी हैं जिसने  राजनीति , षड्यंत्रों और रक्तपात के बीच फिल्म में ह्यूमर देने का काम किया है। उसके पंडित के साथ  दृश्य मजेदार और संवाद चुटकीले है। कार्थी का नंदिनी (ऐश्वर्या) और कुंदवई (तृषा) से संवाद भी रोचक और मजेदार है। जब दो शक्तिशाली महिलायें- नंदिनी और कुंदवई  आमने सामने होती हैं तो उनके डायलॉग और एक्टिंग आकर्षित करती है। आदित्य करिकलन(विक्रम), जो नंदिनी का पुराना प्रेमी था,को नंदिनी से अलग होना अंदर से खाये जा रहा है। विक्रम अपने किरदार की कुंठा, उसके गुस्से को बाहर ला पाने में कामयाब रहते हैं । भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फिल्‍म, लगभग 500 करोड़ की है।  मणिरत्नम ने इस महागाथा को बेहद भव्य तरीके से शूट किया है, लेकिन फिल्म की गति थोड़ी धीमी होने के कारण उत्साह बरकरार नहीं रख पाती। फिल्म का खूबसूरत संगीत एआर रहमान ने दिया है। जबकि रविवर्मन की सिनेमटोग्राफी कमाल की है। इसके हिंदी में डायलॉग दिव्य प्रकाश दुबे (मुसाफिर कैफै) ने लिखे हैं। फिल्म हिंदी भाषियों को कनेक्ट नहीं कर पाई क्योंकि इसका नाम किसी की समझ में ही नहीं आया। यदि हिंदी भाषियों के लिए कोई अलग नाम से प्रचारित किया जाता तो बेहतर होता। फिल्म की एडिटिंग में कुछ दृश्य हटाते जा सकते थे और युद्ध के दृश्य कुछ बेहतर VFX के साथ आ सकते थे। अगले पार्ट के लिए कुछ प्रश्नों के उतर तो दर्शकों के मन में जिज्ञासा के बिंदु बनेंगे ही कि

  1. पोन्नी माई बार बार  अरुलमोझी को क्यों बचाती है?

  2. ऐश्वर्या राय क्या डबल रोल में हैं, तो माई कौन है?

  3. क्या अरुल मोझी और वंदीतेवन समुद्र में डूबने से बच जायेंगे?

  4.  आदित्य क्यों बार बार कहता हैं कि नंदिनी साम्राज्य का विनाश करना चाहती है और क्या वह नंदिनी को परास्त कर पायेगा?

  5. षड्यंत्रों के पीछे नंदिनी की मंशा क्या है?

  6. वंदीतेवन का रहस्य क्या है?

  वस्तुत कहानी किसी भी राजवंश या राजशाही की हो, उसमें रक्तपात, षड्यंत्र, धोखा होता ही है। बात यह है कि आप कितना बेहतर तरीके से रोचक बनाते हुए और इतिहास से छेड़छाड़ किये बिना उसे प्रस्तुत कर पाते हैं । देखना है कि पोन्नियन सेल्वियन के दूसरे पार्ट में मणिरत्नम कितना बेहतर तरीके से इस कहानी को दिखा पाते हैं? मणिरत्नम ने पहली बार ऐतिहासिक कहानी को चुना है और जिस कथा पर अबतक कोई फिल्म नहीं बना सका, उसपर फिल्म बनाकर दिखाया है। लेकिन मणिरत्नम को  आप  रोजा, बाम्बे और गुरु टाइप की सोचकर मत देखने जाइये, बल्कि चोल राजाओं की राजशाही देखने जाईये तो मजा आएगा। संवाद लेखक के रुप में दिव्य प्रकाश दुबे का नाम मणिरत्नम की फिल्म में देखकर अच्छा लगा। लखनऊ वासी श्री दुबे नयी हिंदी वाले लेखक हैं।

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