बदलते कलेवर मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली
पीडीएस यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) का तात्पर्य है सस्ती कीमतों पर खाद्य और खाद्यान्न वितरण के प्रबंध की व्यवस्था करना। गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी के तेल जैसे प्रमुख खाद्यान्नों को इस योजना के माध्यम से सार्वजनिक वितरण की दुकानों द्वारा पूरे देश में पहुंचाया जाता रहा है। अब इसमे मुख्य रुप से गेंहूँ चावल और मक्का का वितरण किया जाता है। योजना का मकसद सस्ती दरों पर देश के कमजोर वर्ग को खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। एक सर्वे के अनुसार मिट्टी तेल मात्र दो प्रतिशत लोग उपयोग करते थे, इस कारण धीरे धीरे यह समाप्त कर दिया गया गया है। साथ मे सरकार की उज्वला योजना ने घर घर मे रसोई गैस पहुंचा दिया जिससे खाना पकाने के लिए मिट्टी तेल की जरूरत नही रही। प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना के अंतर्गत घर घर बिजली पहुंचाने की योजना ने प्रकाश के लिए भी मिट्टी तेल की उपयोगिता समाप्त कर दी। चीनी पहले ही समाप्त हो चुका था ,अब बस गेंहूँ चावल,मक्के का वितरण टी पी डी एस के माध्यम से हो रहा है। खाद्य तथा रसद विभाग का पहला कदम सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने की ओर था। फर्जी राशनकार्डों, खाद्यान्न की घटतौली के बीच गरीबों के खाद्यान्न की कालाबाजारी के आरोपों से जूझते विभाग ने आधार कार्ड युक्त वितरण प्रणाली को अपनाया जिसमे ई -पाश मशीनों के माध्यम से कार्डधारकों के बीच खाद्यान्न वितरण की व्यवस्था लागू की। जब मूल चीज मे सुधार हो जाता है तो उससे जुड़ी सभी बातें धीरे धीरे सही होने लगती हैं। सही लाभार्थियों को चिन्हित करने मे अंतर्विभागीय टीमों और आधार कार्ड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब वास्तविक लाभार्थी खाद्यान्न लेने आने लगे तो स्वाभाविक रुप से कोटेदारों को संपूर्ण खाद्यान्न अपनी दुकान तक लाने की मजबूरी हो गई। जब शतप्रतिशत वितरण करना है तो वो लोग सरकारी गोदामो की घटतौली और आपूर्ति विभाग की वसूली का विरोध करने लगे। पहले कोटेदारी एक लाभ का व्यवसाय माना जाता था, लेकिन बढ़ते दबाव मे कोटेदारों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया। हालांकि विभाग ने कोटेदारी कमीशन मे बहुत वृद्धि कर उन्हें बनाये रखने का प्रयास भी किया है। गोदामो की घटतौली और ठेकेदारों की चोरी , खाद्यान्न के डायवर्जन से रोकने के लिए एफ सी आई से चलने वाली ट्रकों मे जीपीएस लगाकर उसकी आनलाइन ट्रैकिंग की जाने लगी है। आज मिंडा ग्रुप की एक टीम 24×7 इसी काम मे लगी है, जिसमे ट्रको के कहीं ज्यादा देर रुकने, चिन्हित मार्ग से अलग से चलने पर संबंधित अधिकारियों को मैसेज भेजने लगती है। इसके लिए कई प्रकार के मोबाइल एप बनाये गये हैं जिनमे रियल टाइम फीडिंग न होने पर रेड फ्लैग प्रदर्शित होने लगता है। सप्लाई चेन मैनेजमेंट सिस्टम के अंतर्गत एंड टू एंड कंप्यूटराइजेशन किया गया। एफ सी आई से खाद्यान्न उठान से लेकर परिवहन, गोदामो मे भंडारण, निर्गमंन, डोर स्टेप डिलीवरी से लेकर लाभार्थियों मे ई पाश के माध्यम से वितरण तक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था लागू की गई। गोदामो पर घटतौली रोकने के लिए हरेक गोदाम पर पांच टन का कंप्यूटरीकृत धर्मकांटा लगाया गया है।राशन कार्ड पोर्टिबिलिटी एक ऐतिहासिक कदम था विभाग के लिए जब इसके माध्यम से लाभार्थियों को यह सुविधा दी गई कि वह जहाँ भी रहे अपने यूनिक राशनकार्ड के माध्यम से वहाँ के कोटेदार से अपना खाद्यान्न प्राप्त कर सकता है।अब यह बाध्यता नही रह गई की जिस गांव का है वह चसी गांव के पीडीएस दुकानदार से अपना खाद्यान्न प्राप्त करे। ये पैन स्टेट राशनकार्ड की सुविधा वैसे लाभार्थियों के लिए लाभप्रद थी जो आजीविका के लिए गांव छोड़कर अन्य शहरों मे चले जाते हैं।
एक जमाना था जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे न तो प्रत्येक महीने खाद्यान्न आता था और जब भी आता था, उसी दिन कोटेदार उसे गोदामो से उठा लेते थे। ना कोई सत्यापन न कोई निगरानी। त्रिस्तरीय सत्यापन व्यवस्था और रोस्टर प्रणाली का आना सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे सुधार का पहला कदम था। आनलाइन सिस्टम के जरिए खाद्यान्न के प्रेषण और प्राप्ति से आगे बढ़ते हुए आज विभाग सिंगल डोर स्टेप की दिशा मे कदम बढ़ा चुका है जिसमे भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से सीधे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दुकानों तक खाद्यान्न भेजने की व्यवस्था लागू की जा रही है। 5 अक्टुबर 2020 से प्रदेश के प्रत्येक जनपद के एक विकास खंड मे यह व्यवस्था लागू की गई है। यह एक ऐतिहासिक परिवर्तन है सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे सुधार की दिशा मे। ब्लॉक गोदामो से डोर स्टेप डिलीवरी सिस्टम कभी सफल नही हो पाया और कोटेदारों को इसके लिए गोदामो तक आना ही पड़ता था।कई अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को पीडीएस से ज्यादा फायदा नहीं हुआ है, जिस कारण उन्हें खुले बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है। जहाँ अधिकांश वस्तुओं की कीमतें सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस की तुलना में अधिक होती है। पीडीएस के माध्यम से सबसे गरीब 20% परिवारों तक ही अनाज पहुंच पाता है जो कि बहुत कम है। इसमें काफी क्षेत्रीय असमानता भी है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने यह पाया है कि पीडीएस योजना लंबे समय से अभी भी शहर के क्षेत्रों को ही कवर करती है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली पीडीएस का संचालन ही वास्तविक रूप से चौतरफा मूल्य वृद्धि का कारण है। संभव है कि पीडीएस और न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना मै दी जा रही सब्सिडी का बोझ देश के करदाताओं पर रहा है लेकिन महंगाई का इससे कोई लेना देना नही है। उल्टे यह मार्केट रेट कंट्रोल करता है। आज जब दो तिहाई जनता को पात्र गृहस्थी के माध्यम से खाद्यान्न मिल रहा है तो स्वाभाविक रुप से बाजार मे मांग कम है और जब मांग कम होती है तो बाजार दर कम ही होता है। आज उतरप्रदेश का खाद्य तथा रसद विभाग अपनी उपलब्धियों से सरकार की उपलब्धियों मे सहभागिता कर रहा है तथा अपनी नई छवि के साथ सामने आया है।
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