एडमिनगीरी

डिस्कलेमर का शुरू मे ही लिख देना ,इसलिए उचित है क्योंकि बाद मे लोग ये कहते हैं कि हम तो लाठी डंडा लेकर बस आपके पीछे दौड़ने ही वाले थे कि आपने डिस्कलेमर लिखकर हमपर सौ मन पानी डाल दिया। तो हय परे होशोहवास मे डिस्कलेमर लिखते हैं कि " आगे लिखे मे ( जो पता नही क्या है क्योंकि व्यंग्य लिखने आता नही और कथा इसे कह सकते नही, बस ये तो लंतरानी टाइप का कुछ है) किसी सज्जन के नाम से पात्र के नाम का मिलना एक दुखद संयोग है और मात्र इसी से आप रायल्टी पाने के हकदार नही हो जाते , और खुशफहमी के शिकार भी मत होईयेगा क्योकि जो हमारे परम श्रद्धेय शास्त्री जी महाराज आगे इसमे करने जा रहे हैं, उससे व्युत्पन्न प्रसिद्धि मे आपको रंचमात्र भी हिस्सा प्राप्त होने की गुंजाइश नही है। तो हमारे श्री श्री राजाराम शास्त्री जी ने बहुत दिनों के गहन मंथन पश्चात यह निर्णय लिया कि वह भी एक फेसबुक ग्रुप बनायेंगे।श्रीमान जुकरबर्ग जी ने इतना बड़ा प्लेटफार्म उपलब्ध करा दिया है तो कोई न कोई ट्रेन उस पर दौड़ानी ही चाहिए, भले ही वह " नेपलिया ट्रेन " ही क्यों न हो!  पांच साल रगड़ रगड़कर    " पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन" पढने  के बाद भी जब कहीं " एडमिनिस्ट्रेशन का जुगाड़ न भिड़ा पाये तो इस एडमिनिस्ट्रेशन स्किल का उपयोग इसी मे करने की सोची।तो उन्होंने गांव के दिनो मे चौक पर " बिंदसरी के चाय की दुकान" जिसे सब "अड्डा" कहते थे, नाम से ग्रुप बना डाला। खोज खोजकर उसमे सभी अड्डेरियों को जोड़ा! वो काफी खुश थे कि अब उनकी ऊंगलियों(की- पैड) पर नाचने वाले 73 आदमी थे, जो न जाने कहां कहां रहते थे पर कमांड उनके हाथों मे थी।।लेकिन शास्त्री जी मे एक खुड़क थी कि सदस्य वही होगा जिसने कभी अड्डेबाजी की हो या यहाँ चाय पी हो। यदि किसी के सगे भाई ने भी अड्डेबाजी की हो तो क्वालीफाई कर सकता है। हरेक साल 14 फरवरी को वो ग्रुप मे " स्वप्रेम दिवस" मनाते और  सबसे अपना आइडेंटिफिकेशन ओपन करने के लिए रिक्वेस्ट करते साथ मे धमकी भी कि यदि बिंदेसरी के चाय का स्वाद भूल गये हों तो रिफ्रेश कर लें वरना सदस्यता जा सकती है। अब  बेचारे गांव से जुड़े रहने की ख्वाहिश लिए ग्रुपवाले उनकी "एडमिनगीरी" को जबरी झेल रहे थे और कट पेस्ट लगाते रहते थे। कई तो दमकी साधे चुपचाप पड़े रहते ।जब भी कोई इधर उधर की मैसेज डालता वो तुरंत सक्रिय हो जाते और नसीहत भरी धमकी देने लगते।          " रजुआ"  ,शास्त्री जी को उनके लंगोटिया यार ,प्यार से इसी नाम से बुलाते थे पर जबसे एडमिन हो गये, अब ये नाम, उन्हें अखरता था। इधर जबसे न्यायालय ने कह दिया है कि  यदि ग्रुप मे कोई गलत मैसेज फैला तो एडमिन को जेल हो जाएगी, तबसे उनकी फटी रहती है कि कोई उसे जेल न भिजवा दे। उपर से प्रकाश ने एक दिन " नीली फिल्म" के कुछ कटपेस्ट डाल दिए तो शास्त्री जी पानी पानी हो गये। " बड़ा मुश्किल है प्रशासन चलाना। यहां 73 नही संभाला जा रहा है तो न जाने जिला या तहसील कैसे चलाता? शास्त्री जी बस यही सोचते रहते थे।एकदिन जब वो बड़े साधिकार अपनी रियासत मे "वर्चुअल विचरण"(.सर्फिंग) कर रहे थे, अचानक खलल  डालते हुए एक  वकील की नोटिस पहुंची की आपने " बिंदेसरी बाबू" के चाय की दुकान के नाम से ग्रुप बनाकर उनकी  बौद्धिक संपदा के अधिकार। (कापीराइट) का हनन किया है। आप या तो तत्काल ग्रुप भंग करें और लिखित माफीनामा जारी करें ,अन्यथा की दशा मे आपको कोर्ट मे घसीटा जा सकता है। शास्त्री जी तो बुरे फंसे। अड्डेरियों को जब बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ग्रुप का नाम चेंज कर लो, पर उनका ईगो सामने आ रहा था। रखेंगे तो यही नही तो भंग कर देंगे। असल मे किसी "ग्रुपद्रोही" ने बिंदेसरी महराज से सेंक दिया था कि आपके चाय की दुकान के नाम पर शास्त्री जी विज्ञापन करते हैं और पैसा कमाते हैं। ग्रुपवाले भी शास्त्री जी की डिक्टेटरशिप से तंग थे और शास्त्री जी तलवार की धार पर चलते चलते तंग थे। " राजा को प्रजा से और प्रजा को राजा से मुक्ति मिल गई।" अड्डा चाय विहीन हो गया था और शास्त्री जी खलिहर!

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