गोबर से गोवर्द्धन

एक कहावत है" बाप के नाम साग- पात आ बेटा के नाम परोर!दूसरी कहावत है " करनी कुकुर आ नाम राजा बाबू!" अर्थात नाम मे क्या रखा है? ऐसे ही नही कहा जाता । परंतु नाम मे भी बहुत कुछ है"।जन्मते ही बच्चों के नाम रखने की होड़ मच जाती है, ये रखो वो रखो! ये नही रखना वो नही रखना! पर क्या इससे उसके भविष्य और चरित्र पर कोई असल पड़ता है? दस पुस्तकें तलाशने और गूगल बाबा पर मगजमारी करने के बाद समुद्र मंथन सदृश निकले नाम से क्या वो वैज्ञानिक, बहुत बड़ा कलाकार, या अफसर हो जाएगा। कहते हैं लोग विभीषण और दुर्योधन नाम नही रखा करते क्योंकि ये ऐतिहासिक खलनायक हैं। मेरे गांव मे भभीक्षना"   ( विभीषण)  और " दूरजोधन"( दुर्योधन) दोनो थे और बढिया आदमी थे। उनके नाम का कोई असर उनपर नही दिखा। क्या दिलीपकुमार युसुफ खान रहते या संजीव कुमार हरिभाई जरीवाला तो अच्छे एक्टर नही होते? आज के एक्टर/ एक्ट्रेस नाम नही बदलते तो क्या वो सुपर हिट नही हैं।"संभव है कि उस समय  हिंदू बहुसंख्यक जनता मे अपनी अलपसंख्यक छवि छुपाने के लिए तथा थोड़ा सिंपल नाम रखने के लिए नाम बदलने की परंपरा रही हो, पर नरगिस और हेलेन ने तो अपने नाम नही बदले थे।
.नाम से जुड़ा प्रकरण एक यह भी है कि सभी चाहते हैं वो बड़े नामवाला बन जाय, चाहे करनी कैसी भी रहे! जैसे सभी इंदिरा नाम वाले प्रधानमंत्री तो नही बन सकते हैं ना!"अखबार मे नाम" कहानी सबको याद होगी जिसमें वो येन केन प्रकारेण अपना नाम अखबार मे छपवाना चाहता था।नाम को प्रसिद्ध करना या प्रसिद्ध नाम को रख लेना ,एक आम कृत्य है। पर क्या सिर्फ नाम आ जाने से उसके कृत्य तो सही नही हो गये। बल्कि कृत्य उत्कृष्ट हो तो जो भी उसका नाम हो वो प्रसिद्ध हो जाता है और बाकी दुनिया उसी नाम की माला जपने लगती है।ये अलग बात है कि जब मनुष्य का संस्कृतीकरण या अपग्रेडेशन हो जाता है तो वो अपना नाम संशोधन या परिमार्जन कर लेता है।" गोबर "जब शहरी बाबू बनता है तो गोबर लिखने मे शरम महसूस होता है और वह गोवर्धन लिखने लगता है और " तेतरी" तिलोतमा या तिरोहिता बनना पसंद करती है। नाम के आगे चंद्र, नाथ, कांत लगाकर सोफिस्टिकेटेड बना दिया जाता है। लेकिन क्या जो  अपना नाम गोबर -गणेश रखे रह जाते हैं वो क्या वाकई जिंदगी मे कुछ नही कर पाते? कई बच्चों के नाम अच्छा रखने की फरमाईश की जाती थी यहाँ अच्छा से मतलब कर्णप्रिय,जिसका उच्चारण आसानी हो जाय और  कोई नामी गिरामी इंसान के नाम से होता है। कोई क्रिकेटर( भारत मे क्रिकेट खेल का ही क्रेज है बाकी खिलाड़ियों को कोई रोल माडल नही बनाता), कोई फिल्मी हीरो हिरोइन हिट कर गई( यहां हिट फिल्मी लोगों को देवी देवता का दर्जा मिला है) तो उनका नाम अपने बच्चों के रखने की होड़ मच जाती है।
गांवों मे अच्छे से अच्छा नामों को बिगाड़ने की परंपरा है जैसे सत्यनारायण को "सतुआ", कैलाश को "कलुआ", नागेश्वर को नगवा",फूलमती को फूल्लो आदि।
जिन घरों मे जन्म पत्री या कुंडली बनवाई जाती है ,वहाँ जन्मराशि का अलग नाम होता है और स्कूल का और, बुलाने का भी नाम और ही होता है। अब ये कंफ्युजन है कि ग्रह दशा या दैनिक पंचांग किस नाम से उस पर असर करता है, पता नही? परंतु "हरहू, सुरहू, गोबरा, तेतरी, बिकऊआ इत्यादि का न तो जनम पतरी बनता है और न ये रोज चंद्र पंचांग देखने के लिए टीवी या अखबार देखते हैं। इन पर इसका कोई असर नही पड़ता। नामकरण संस्कार भारतीय परंपरा के षोडश संस्कारों मे शामिल है। लोग भगवान के नामों के पहले प्रिफरेंस देते थे और एक लोक कथा भी है कि किस तरह एक पापी  को सिर्फ इसलिए स्वर्ग मिल गया क्योंकि उसने अपने बेटे का नाम " श्री विष्णु " रखा था और दिन भर मे अनेकों बार बेटे का नाम पुकारते रहने के कारण अनायास ही ईश्वर का नाम ले लेता था।" मां- बाप के नाम पर , जन्म स्थान के नाम पर और उत्कृष्ट कर्मो के नाम पर बच्चों के नाम रखे जाते थे।जैसे जानकी, द्रौपदी इत्यादि। इधर विदेशी नाम और चलताऊ नाम रखने की परंपरा पड़ी है। नामों का अर्थ हुआ करता था पर अब सिर्फ वे कैची और निर्रथक होते हैं।चिंटू, टिंकू, मिंकू और गुल्लू जैसे नाम उसी तरह प्रतीत होते हैं जैसे खाने मे " हाट डाग'!

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल