असुरक्षा का भाव

वो रोज सुबह सबेरे आता और गेट के पास आकर फर्श पर बैठ जाता !
" ऐ बाबू! कुछ खाने को दे दे!"
दो तीन बार घंटी बजाने पर हरिया डंडा लिए गलियाते निकलता!
" भागते हो कि नही! हरामी कहीं के! रोजाना दिमाग चाटने चले आते हो सबेरे सबेरे!"
वो सहम जाता और उसकी कातर आंखें तलाशती रहती अम्मा के लिए! उसे शायद पता था कि यदि अम्मा सुन लेगी तो जरूर उसके लिए कुछ लेकर आएगी! हरिया गेट खोलकर दौड़ाता। वह भी तेजी से रोते भागता पर थोड़ी दूर जाकर रुक जाता! जहाँ से वो गेट देख सके कि अम्मा आ रही है कि नही! हरिया जहाँ अंदर वापस आकर गेट बंद करता वो फिर गेट के पास आकर जोर चिल्लाता ताकि अम्मा सुन ले। अम्मा जब भी सुन लेती थी घर मे रात का बचा रोटी सब्जी प्लास्टिक के थैले मे लाकर उसे दे देती थी। इतना ही नही हरिया को डांट भी देती थी।
" मालकिन! आप इन सबको मुंह मत लगाया करिए! सब साले चोर है! जासूसी करने आते हैं!"
" चुप रहो! तुमको तो सब चोर ही दिखाई पड़ता हैं ! बेचारा भूखा रहता है! जहाँ आस होती है वहीं पर आएगा न! सबेरे सबेरे किसी को खाली हाथ लौटाना नही चाहिए! कौन जाने किस रुप मे भगवान आ जाये"!
पर आज अम्मा सुन नही रही थी। रात मे तबीयत खराब हो गई थी। सुबह मे आकर आंख लगी है।   काफी देर आवाज लगाने पर भी अम्मा नही निकली तो वह रोने लगा!"हरिया  भैया! क्या हुआ? मालकिनी आज यहाँ नही है क्या?
" तुमको क्या मतलब ? अपना रास्ता नापो!" हरिया ने गलियाते हुए दौड़ाया!
वह जाकर आगे एक दुकान के पीछे छुप गया।
दस बज गये थे । अम्मा जग गयी थी।
"अरे ! दस बज गये! मुझे जगाया क्यों नही!"
श्यामल बाबू ने कहा" बड़ी मुश्किल से तो तुम्हे नींद आई थी! अब कैसी हो?
" ठीक हूँ"
अम्मा  उठ कर बाहर आई। बच्चे सब स्कूल जा चुके थे। उसे लगा गेट से कोई झांक रहा है।
"कौन है? वो बोली।
वो फिर छुप गया। धीरे धीरे वो गेट के पास पहुंची तो देखा वो लड़का दिवाल के सहारे चिपका खड़ा है!
" यहाँ क्यों खड़े हो? आज रोटी नही मिली क्या?
" नही मालकिनी! रोटी के लिए नही आपके लिए खड़ा था! आज कितना चिल्लाया पर आप जब न  आई तो मुझे डर लगने लगा था। "
" क्यों?
मालकिनी" मेरी मां भी एक दिन इसी तरह चुप होकर सो गई थी! मै कितना चिल्लाता रहा पर वो नही बोली!  रोज सबेरे आप जिस तरह मेरे लिए रोटियां बचाकर रखती है वो भी मेरे लिए रखती थी।"
अम्मा की आंखे भर आई! तो रोज हरिया की गाली सुनने के बाद भी यह यहाँ इसीलिए आता है।इस तरह की  बातें तो उसके राजू ने भी कभी नही की ! उसने हरिया को बुलाया और कहा अंदर से रोटियां लेकर आओ!
" रोटियां तो मैने कुत्ते को खिला दिया"! हरिया ने डरते हुए कहा।
अम्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया!
".कितने बेकार आदमी हो तुम! आदमी को दो रोटियां देने मे तुम्हारी जान निकल जाती है और जानवर को रोटियां खिलाते हो!
श्यामल बाबू नीचे शोर सुनकर नीचे आये!
"क्या हुआ? क्या शोर हो रहा है?
उनकी नजर गेट के बाहर खड़े उस डरे सहमे लड़के पर पड़ी!
" इसने कुछ किया है? मै पहले से ही कहता था कि ऐसे लड़कों को सिर पर मत चढाओ! क्या किया इसने?
" आप तो एकदम एक्सप्रेस ट्रेन की तरह सरपट भाग रहे हैं। बिना बात जाने इस बेचारे को क्यों कोस रहे हैं?
श्यामल बाबू सकपका गये। उन्हें लगा कि उनकी गलत टाइम पर इंट्री हो गई है। मामला संभालते हुए कहा" तो फिर क्या हुआ?
" सबकुछ लादकर ले जाईयेगा स्वर्ग मे! यहाँ गरीब और जरुरतमंदो को दान करेंगे सो नही बस अपना पेट भरना। और ये आपका हरिया ! रोजाना इस बेचारे के पीछे लगा रहता है और ये मेरे लिए इतना परेशान था!
" अंदर आ जाओ बेटा! स्कूल नही जाते हो?
" जाता था पर मास्टर साहब आते ही नही है और आते भी हैं तो खाली आपस मे गपियाते रहते हैं। जाऊंगा थोड़ी देर मे। आपसे मिलने के लिए रुका था!"
"शाम मे आना ! राजू की पिछले साल की किताबें ले जाना पढाई के लिए! अम्मा बोली।
दूर खड़ा हरिया चिढ रहा था कि इस झोपड़पट्टी वाले को अम्मा काहे इतना सर पे चढा रही है। वो उस लड़के पर आंखे तरेर रहा था कि यहाँ से जल्दी जाओ! अम्मा ने भांप लिया था।
शाम मे अम्मा ने हरिया को पास बैठाकर समझाया कि तुम्हें तो इसका हमदर्द होना चाहिए था क्योंकि यह भी तुम्हारी तरह गरीब है।आज तुम अगर काम न कर रहे होते तो गांव मे तुम्हारे बच्चे भी तो इसी तरह बदहाल होते।
हरिया रोने लगा बोला" मलकिनी मै इससे घृणा नही करता बल्कि डरता हूँ कि कहीं यह मेरी नौकरी न खा जाये। मुझे भी तो बाबूजी ने इसी तरह दया दृष्टि देकर अपने घर मे रख लिया था। इसको देखकर मै डर जाता हूँ कि कहीं आप इसे नौकर बनाकर रख न लें और मेरी नौकरी चली न जाये।
अम्मा चुप थी। वह हरिया की असुरक्षित मानसिकता को समझने का प्रयास कर रही थी।

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