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Showing posts from October, 2024

कालिंजर - बुंदेलखंड का अजेय किला

भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित कालिंजर का किला अपने में एक विस्तृत काल के इतिहास को समेटे हुआ अक्षुण्ण खड़ा है। इसकी गोद में न जाने कितने ऐतिहासिक महल, मंदिर, मूर्तियां, गुफाएं और रहस्यमयी कहानियां छुपी हुई है।               कालिंजर अर्थात जिसने समय पर भी विजय पा लिया हो। कालिंजर शब्द  का उल्लेख तो प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में मिल जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सतयुग में यह स्थान कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से विख्यात रहा है। सतयुग में कालिंजर चेदि नरेश राजा उपरिचरि बसु के अधीन रहा व इसकी राजधानी सूक्तिमति नगरी थी। त्रेता युग में यह कौशल राज्य के अन्तर्गत आ गया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार  तब कोसल नरेश राम ने इसे भरवंशीय ब्राह्मणों को सौंप दिया था। किले मैं ही  कोटितीर्थ के निकट लगभग बीस  हजार वर्ष पुरानी शंख लिपि में लिखित स्थल है, जिसमें वनवास के समय भगवान राम के कालिंजर आगमन का उल्लेख किया गया है। श्रीर...

तलाक़ - एक विश्लेषण

मान्यता है कि वैवाहिक जोड़े  ईश्वर स्वर्ग में बनाता है लेकिन हमेशा इन जोड़ों की आपस में नहीं बनती और ये बीच सफर में ही अलग होने  का फैसला कर लेते हैं। सात जन्म का यह रिश्ता सही तरीके से एक जन्म भी नहीं चल पाता है और बात तलाक या विवाह विच्छेद तक पहुंच जाती है।। पहले भारत में तलाक के किस्से आम नहीं थे क्योंकि हमारे यहां विवाह एक  सामाजिक और धार्मिक संस्कार के रूप  में माना जाता था , जिसमें दंपति तमाम वैवाहिक और पारिवारिक समस्याओं के बावजूद इसे  जीवनपर्यंत निभाने की कोशिश करते थे। अनेक ऐसे परिवार हैं, जिनमें पति पत्नी में कभी नहीं बन पायी परंतु उन्होंने समाज  और परिवार को ध्यान में रखकर अलग होने की बात कभी नहीं सोची, परंतु अब बदलते समय के साथ लोग इस दिशा में मुड़ने लगे हैं। जाहिर है कि लोग अब विवाह को एक सामाजिक -धार्मिक संस्कार न मानकर एक सामाजिक समझौता के रुप में समझने लगे हैं , जिसमे दो पक्ष साथ मे जिंदगी बिताने का फैसला करते हैं और जब आपस में नही बनती है तो दोनों अलग हो जाते हैं।             ...

दलहन क्रांति की आवश्यकता

हरित क्रांति  ने जहां एक ओर भारत को गेंहू धान सदृश खाद्य पदार्थों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाकर खाद्य संकट से उबारने का काम किया वहीं दूसरी ओर इसने एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ दलहन की उपेक्षा कर इसमें देश को बहुत पीछे कर दिया। वस्तुत: हरित क्रांति के संकर बीजों, रासायनिक खाद, कीटनाशक जहर व खरपतवार नाशी संसाधनों ने स्वावलंबी घर की खेती को न सिर्फ  बिगाड़ दिया बल्कि इससे उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य भी बिगड़ा। आम भारतीयों की थाली से दाल दूर होता चला गया। वर्ष 1961 में कुल भारतीय खेती में दलहन की खेती की हिस्सेदारी जो 17 प्रतिशत थी , वर्ष 2009 में घटकर 7 प्रतिशत मात्र रह गई। असल में विभिन्न महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर दालें कुपोषण दूर करने में सहायता करती हैं। भारत , जहां कुपोषित बच्चों की संख्या अत्यधिक है, वहां इससे लड़ने में दालों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चावल और गेहूं जैसे सामान्य अनाज की तुलना में दालों में प्रति ग्राम औसतन दो से तीन गुना प्रोटीन होता है। इसके अतिरिक्त दालों की खेती फसल चक्र (क्रॉप रोटेशन) के ज़रिए जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायता देती है तथा लचीली और पा...

सरकारी खाद्यान्न खरीद में बढ़ती पारदर्शिता

          न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत किसानों से धान /बाजरा /ज्वार/मक्का की खरीद प्रारंभ  होने वाली है। वस्तुत न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के संबंध में हमेशा से किसानों की मांगें उठती रही है और सरकार द्वारा इस संबंध में निरंतर परिवर्तन और सुधार कर उन्हें अधिकाधिक लाभ पहुंचाने की कोशिश की जाती रही है। यहां यह बताना श्रेयस्कर होगा कि भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष किसानों  को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त कराने के उद्देश्य से खरीफ और रबी सीजन में कुल 23 फसलों  के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है। यह कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसा पर आधारित होता है। केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से वर्ष 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग  का गठन किया गया था। भारत में सर्वप्रथम 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी। तबसे हरेक साल इसमें सुधार और विस्तारीकरण के उपाय किए जाते रहे हैं। हालांकि उस समय देश में खाद्यान्न उत्पादन की अल्पता थी और  भारत खाद्यान्न आयातक देशों में गिना जाता था परंतु आज भा...