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Showing posts from September, 2024

महंगी शादियों का अर्थशास्त्र

अक्सर लोग अपने घर की शादियों में जमकर खर्च करते हैं। इनमें से जो हैसियत और रसूख वाले हैं वो अपना स्टेटस मेंटेन करने के लिए ऐसा करते हैं तो  वो लोग भी, जिनकी हैसियत उतनी नहीं है, उनसे प्रभावित होकर सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए खर्च करते हैं। प्रदर्शन की इच्छा तो गरीबों की भी होती है, तो वो इसे पूरा करने के लिए कर्ज में डूबे जाते हैं। पिछले दिनों अंबानी परिवार के वैवाहिक समारोहों को लेकर मीडिया में  शादियों  में किया जानेवाला खर्च, प्रदर्शन और उसकी उपयोगिता बहस का मुद्दा बन गया है। लेकिन इसका एक पक्ष और है जो हमारी बाजार  और हमारे देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार अंबानी परिवार की इस शादी में लगभग  5 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए जो उनकी हैसियत का 0.5 प्रतिशत ही था। अक्सर सामान्य लोग अपने घर की शादियों में अपनी हैसियत का 5 से 15 प्रतिशत तक खर्चा कर लेते हैं।            शादियों  में किया गया यह ख़र्च भी अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है। इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार देश...

निर्यात में कृषि उत्पादों की बढ़ती भूमिका

स्वतंत्रता प्राप्ति काल से लेकर 1980 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था और यह एक प्रमुख खाद्यान्न आयातक देश के रूप में जाना  जाता था, परंतु ग्रीन रिवोल्यूशन के बाद स्थिति पलट सी गई है। भारत अब आयातक से अन्नदाता और निर्यातक बन गया है। वर्ष 2023-24 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन लगभग 3,288.52 लाख टन हुआ है, जो पिछले पांच वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन 3,077.52 लाख टन से 211 लाख टन अधिक है, अर्थात  निरंतर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि होती जा रही है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसकी निर्यात की स्थिति से लगाई जा सकती है जो विदेशी मुद्रा के भंडार को सशक्त करता है। वर्ष 2023-24 में हालांकि कृषि निर्यात 48.9 बिलियन डॉलर तक तो पहुंच गया , लेकिन यह वर्ष 2022-23 के  53.2 बिलियन डॉलर से कम था। इस वर्ष  को अपवाद स्वरूप ही माना जा सकता है क्योंकि निर्यात कम होने के पीछे समसामयिक वैश्विक संकट है, जिसका असर लगभग सभी देशों पर पड़ा है। परंतु यदि हम पिछले दशकों से इसका तुलना करें तो भारत के निर्यात में कृषि उत्पादों का हिस्सा निरंतर बढ़ रहा है। भारत का कृषि क्...