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Showing posts from January, 2025

महाकुंभ का अर्थशास्त्र

धर्म का संबंध सिर्फ धार्मिक उपासना ,पूजा, अर्चना, नीति मूल्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि धर्म व्यापक अर्थों में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक उपक्रमों का प्रतिबिम्ब होता है। स्वाभाविक रूप से संगम नगरी प्रयागराज का महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का संगम है। इसके आयोजन पर होने वाला खर्च, व्यवस्थाओं का विस्तार और इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियां इसे एक अद्भुत और अद्वितीय आयोजन बनाती हैं। इसका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पक्ष के साथ साथ  आर्थिक पक्ष भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यापार और आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।          महाकुंभ के आयोजन पर किये जानेवाले व्यय, इसके बजट के आकार ,रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना के विकास, पर्यटन में वृद्धि और व्यापारिक आय में वृद्धि से इसका आर्थिक महत्व परिलक्षित होता है। प्रयागराज में महाकुंभ मेला आयोजन  के डेढ़ महीने में लगभग 40 करोड़ श्रद्धालु का संगम क्षेत्र में आगमन, आयोजन 7500 करोड़ रुपये का खर्च, 4 हजार हे...

पर्यटन स्थलों में बदलते तीर्थ स्थल

 वर्ष 2025 के पहले दिन अर्थात पहली जनवरी को अनुमानतः अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में 5 लाख से अधिक लोगों ने दर्शन किए। इसी दिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ मन्दिर में 7 लाख, उज्जैन के महाकाल मन्दिर में 6 लाख, आंध्र प्रदेश के श्री तिरुपति मंदिर में 4 लाख, ओडिशा के श्री जगन्नाथपुरी मंदिर में 5 लाख और हरिद्वार में गंगा नदी के घाटों पर लगभग 3 लाख लोगों का आगमन हुआ। जाहिर है कि यह आंकड़े धर्म स्थलों पर निरंतर बढ़ती भीड़ की ओर इशारा करते हैं। दूसरी ओर  इस वर्ष न्यू ईयर को मनाने के लिए गोवा पहुंचनेवाले पर्यटकों की संख्या में कमी आई है। यह भारत में पर्यटन के बदलते ट्रेंड की ओर इशारा करते हैं। धार्मिक  स्थलों या तीर्थों के ओर बढ़ते संख्या में दर्शनार्थी सिर्फ श्रद्धालु नहीं है, बल्कि इनमें वो भी हैं ,जो इसी बहाने घूमने फिरने के लिए अपने घरों से निकल रहे हैं। यह धार्मिक पर्यटन या आध्यात्मिक पर्यटन का हिस्सा है। यह तीर्थ/धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थलों के रूप में परिवर्तित कर रहा है।      वस्तुत: धार्मिक पर्यटन में लोग धार्मिक या आध्यात्मिक उद्देश्यों से यात्...