जैविक खेती की बढ़ती स्वीकार्यता
हरित क्रांति ने जहां एक ओर भारत को गेंहू धान सदृश खाद्य पदार्थों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाकर खाद्य संकट से उबारने का काम किया वहीं दूसरी ओर इसने एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ दलहन की उपेक्षा कर इसमें देश को बहुत पीछे कर दिया। वस्तुत: हरित क्रांति के संकर बीजों, रासायनिक खाद, कीटनाशक जहर व खरपतवार नाशी संसाधनों ने स्वावलंबी घर की खेती को न सिर्फ बिगाड़ दिया बल्कि इससे उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य भी बिगड़ा। आम भारतीयों की थाली से दाल दूर होता चला गया। वर्ष 1961 में कुल भारतीय खेती में दलहन की खेती की हिस्सेदारी जो 17 प्रतिशत थी , वर्ष 2009 में घटकर 7 प्रतिशत मात्र रह गई। असल में विभिन्न महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर दालें कुपोषण दूर करने में सहायता करती हैं। भारत , जहां कुपोषित बच्चों की संख्या अत्यधिक है, वहां इससे लड़ने में दालों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चावल और गेहूं जैसे सामान्य अनाज की तुलना में दालों में प्रति ग्राम औसतन दो से तीन गुना प्रोटीन होता है। इसके अतिरिक्त दालों की खेती फसल चक्र (क्रॉप रोटेशन) के ज़रिए जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायता देती है तथा लचीली और पा...